Page 5 - LESSON NOTES - MANUSHYATA - 2
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अंत र – आकाश
सम - सामन े
पर परावलंब - एक दूसर का सहारा
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अम य -अंक -- दवता क गोद
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अनंत - िजसका कोई अंत न हो
अपंक - कलंक र हत
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या या -: क व कहता ह क उस कभी न समा त होने वाले आकाश म असं य
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दवता खड़े ह , जो परोपकार व दयालु मनु य का सामन से खड़े होकर अपनी
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भुजाओ को फलाकर वागत करते ह । इस लए दूसर का सहारा बनो और सभी
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को साथ म लकर आग बड़ो। क व कहता ह क सभी कलंक र हत हो कर दवताओ
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क गोद म बैठो अथा त य द कोई बुरा काम नह ं करोगे तो दवता तु ह अपनी गोद
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म ले लगे। अपने मतलब क लए नह ं जीना चा हए अपना और दूसर का क याण
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व उ धार करना चा हए य क इस मरणशील संसार म मनु य वह ह जो मनु य
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का क याण कर व परोपकार कर।
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