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               उसकी पीठ पर हाथ फरने लग। कफर अिानक उछलकर उस पर िढ़ गए, घोड़ा हवा से बात
               करने लगा। अथाथत घोड़ा बड़ी तेज़ी से दौड़ने लगा। उसकी िाल को दिकर िड्गससंह क े
                                                                                  े
               हृदय में ईष्याथ जागने लगी। वह डाक ू  था, क्जसक कारण क्जस भी वस्तु को वह पसंद करता
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               था, उस पर वह अपना ही अचधकार समझता था। उसक पास मज़बूत भुजाओं वाल कई
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               आदमी थे, जो बहत ही तनदयी थे। क्जनक बल पर जातेजाते उसने बाबा भारती से कहा कक -
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               वह उस घोड़े को उनक पास नहीं रहने दगा। अथाथत वह सुलतान को उनसे छीन लगा। बाबा
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                भारती उसकी इन बातों से डर गए। अब उन्ह रात को नींदनहीं आती थी। उनकी सारी रात
               घोड़े को बाँधने क े स्थान पर सुलतान की रिवाली में कटने लगी थी। हर पल उन्ह िड्गससंह
                                                                                               ें
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               का भय लगा रहता था, परतु कई महीने बीत जाने पर भी जब िड्गससंह नहीं आया तब
               बाबा भारती क ु छ असावधान हो गए और अपने दर को ककसी सपने क े डर की तरह समझने
               लग। अथाथत उन्ह लगने लगा कक िड्गससंह ने उन्ह डराने क े सलए झूठ बोला होगा।
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               पाठािंर् –
               सिंध्या का समय र्ा। ---- पूर बल से चचल्लाकर बोल, “ज़रा ठहर जाओ।”
                                                                  े
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               पूर बल से चिल्लाकर बोल, “ज़रा ठहर जाओ।”
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               र्ब्दार्श –
               सिंध्या – शाम

               फ ू ल न समाना – अत्यचधक प्रसन्न होना
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               सहसा – अिानक
               कगल – अभागा, गरीब, दररद्र, बेिारा
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               करुणा – दद, पीड़ा
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               अपाहहज – काम करने क े अयोग्य, जो काम न कर सक
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               कराहना – दद में चिलाना
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               कष्ट – दुि, तकलीफ़

               दुखखयारा – दुिी, दुुःि का मारा
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