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होते रहते थे। बाबा भारती ने अपना रुपया, क्रय-ववक्रय की वस्तुए, सामान-सामग्री एवं संपवि,
                                                                              ँ
                                                                           ें
               ज़मीन आहद अपना सब-क ु छ छोड़ हदया था, यहाँ तक कक उन्ह नगर क े जीवन से भी नफ़रत
               हो गई थी। कहने का आशय यह है कक बाबा भारती ने अपना सब क ु छ अपने घोड़े क े सलए
                                                                                     े
               त्याग हदया था। अपना सब क ु छ छोड़कर वे गाँव से बाहर अब एक छोट-से मंहदर में रहते थे
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                                                                             े
               और भगवान का भजन करते रहते थे। उन्ह एक भ्र्म अथवा संदह हो गया था कक वे
                                                                े
                                                                                              ं
               सुलतान अथाथत अपने घोड़े क े बबना नहीं रह सकग। वे अपने घोड़े क े िलने क े ढग पर
                                                              ें
               मोहहत थे। वे कहते थे कक उनका घोडा ऐसे िलता है जैसे मोर बादल को दिकर नाि रहा
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               हो। जब तक शाम क े समय सुलतान पर िढ़कर बाबा भारती आठ-दस मील का ितकर नहीं
               लगाते थे, उन्ह आराम अथवा सुक ू न नहीं समलता था।
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               पाठािंर् -

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               खड्गससिंह उस इलाक का प्रससद्ध डाक ू --------------------------------आज उपस्थर्त हो सका हाँ।
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               र्ब्दार्श –
               कीततश – ख्यातत , बड़ाई
               अधीर – बेिैन , व्याक ु ल , ववह्वल, िंिल , अक्स्थर

               चाह – इच्छा
               विचचत्र – अनोिा

               मोह – प्रेम, प्यार
               छवि – आक ृ तत, सौंदयथ

               अिंककत – चिक्ह्नत
               असभलाषा – इच्छा

               उपस्थर्त – ववद्यमान, मौजूद, हाक्ज़र
               व्याख्या –

               क्जस इलाक में बाबा भारती रहते थे उस इलाक का प्रससद्ध डाक ू  िड्गससंह था। िड्गससंह
                                                            े
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               का नाम सुनकर ही लोग काँप जाते थे। सुलतान की प्रशंसा फलतफलते िड्ग ससंह क े कानों -
                                                               े
               तक भी पहँि गई। उसका मन भी सुलतान को दिने क े सलए व्याक ु ल होने लगा। एक हदन
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                                                                                              े
               िड्गससंह दोपहर क े समय बाबा भारती क े पास पहँिा और उनको नमस ् कार करक उनक
                                                                                                    े
                                                                 ु
               पास बैठ गया। बाबा भारती ने िड्गससंह का हाल पूछा तो  िड्गससंह ने ससर झुकाकर उनकी
                                                                               े
               बात का उिर हदया। बाबा भारती क े पूछने पर कक िड्गससंह उनक पास तयों आया है। तो
                                                                            े
               िड्गससंह कहता है कक सुलतान को दिने की इच्छा उसे उनक पास िींि लाई ह। बाबा
                                                    े
                                                                                              ै
               भारती कहते हैं कक सुलतान एक अनोिा जानवर ह। िड्गससंह उसे दिेगा तो िुश हो
                                                                                   े
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               जाएगा। िड्गससंह ही कहता है कक उसने भी सुलतान की बहत प्रशंसा सुनी ह। बाबा भारती
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               सुलतान की िाल की प्रशंसा करते हए कहते हैं कक सुलतान की िाल से िड्गससंह को स्नेह
                                                  ु
                                                                                            ं
               हो जाएगा। िड्गससंह कहता है कक उसने सुना है सुलतान दिने में भी बहत सुदर ह। इस
                                                                         े
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               पर बाबा भारती कहते हैं कक जो सुलतान को एक बार दि लता है, उसक हृदय पर उसकी
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