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सूरत चिक्ह्नत हो जाती ह। अथाथत एक बार दिने से ही लोगों क े मन में सुल्तान का चित्र
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बस जाता ह। िड्गससंह भी कहता है कक उसकी बहत हदनों से सुलतान को दिने की इच्छा
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थी, लककन वह आज हाक्जर हो सका ह।
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पाठािंर्-
बाबा भारती और खड्गससिंह दोनों अथतबल में पहाँचे। ---------------------इस भय को थिप्न क े
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भय की नाईं समथ्या समझने लग।
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र्ब्दार्श –
अथतबल – घोड़े को रिने का स्थान
घमिंड – अहकार, असभमान
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आश्चयश – अिरज, अिंभा, हरानी
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बााँका – अच्छा
पश्चात – बाद में
हलचल – खलबली, घबराहट, तोड़-फोड़, उपद्रव
अधीरता – आतुर, धैयथहीन
अधीर – व्याक ु ल
उचककर – उछलकर
हृदय पर सााँप लोटना – ईष्याथ करना , ककसी से जलन होना
बाहबल – मज़बूत बाँहोंवाला, क्जसकी भुजाए शक्ततशाली हों
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बेरहमी – तनदयता, दयाशून्यता, तनष्ठ ु रता
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प्रततक्षण – हर पल
मास – महीना
नाईं समथ्या – डराने क े सलए बोला गया झूठ
व्याख्या –
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िड्गससंह क े घोड़े को दिने की इच्छा पूततथ क े सलए बाबा भारती और िड्गससंह दोनों घोड़ों
को बाँधने क े स्थान पर पहँिे। बाबा ने िड्गससंह को बड़े ही असभमान से अपना घोड़ा
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हदिाया। िड्गससंह ने बड़े आश्ियथ क े साथ घोड़ा दिा। उसने सैकड़ों घोड़े दि थे, परतु ऐसा
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सुन्दर व ् अच्छा घोड़ा उसकी आँिों क े सामने से कभी नहीं गुजरा था। अथाथत िड्गससंह ने
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अपनी क्जंदगी में ऐसा सुदर घोड़ा नहीं दिा था। उसे दिकर वह सोिने लगा कक यह सब
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भाग्य की बात ह। तयोंकक ऐसा घोड़ा तो िड्गससंह क े पास होना िाहहए था। इस साधु अथाथत
बाबा भारती को ऐसी िीज़ों से कोई लाभ नहीं ह। क ु छ देर तक िड्गससंह आश्ियथ से िुपिाप
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िड़ा रहा। लककन क ु छ समय बाद उसक हृदय में खलबली होने लगी। छोट बच्िों की तरह
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धैयथहीन होकर वह बाबा से बोला कक अगर यहाँ आकर भी सुलतान की िाल नहीं दिी तो
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कोई फायदा नहीं होगा। बाबा भारती भी इसान ही थे। अपनी िीज़ की प्रशंसा दूसर क े मुँह से
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सुनने क े सलए उनका हृदय भी बैिैन हो गया। उन्होंने घोड़े को िोला और बाहर लाए और