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SLOK-7




               अषप स्ििथम्ी लङ्कय न मे लक्ष्मि रोचते ।
               जननी जन्मभूसमश्च स्िगयदषप गरी्सी ।
                                       थ

               पदच्छद :- अषप स्ििखम्ी लङ्िय न म लक्ष्मि रोचत जननी जन्मभूलमैः च स्िगयत् अषप गरी्सी ।
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               अन्ि्ैः – ह लक्ष्मि ! स्ििखम्ी अषप लङ्िय म (मह््) न रोचत । ्तो दह जननी जन्मभूलमैः च
                                                                िं
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               स्िगयत् अषप गरी्सी (भिनत) ।
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               भयियिथ:- श्रीरयमैः लक्ष्मििं िि्नत ्त् ह लक्ष्मि ! ्द््षप िय स्ििखम्ी अन्स्त तियषप लङ्िय्य
               ननियसैः न मह््िं रोचते, ्तैः जननी जन्मभूलमैः च इनत द्ि् स्िगयत् । अषप श्रष्ठम् अन्स्त । अत:
                                                                                      े
                                                                     िं
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               मयतृभूमौ ननियसैः उथचतैः ।

               शब्दयियथ:- अषप भी।
               स्ििखम्ी – सोने से ननलमखत।
               मे – मुझे ।
               रोचते – रुथचिर लगती ह।

               स्िगयखदषप – (स्िगयत्+अषप ) – स्िगख से भी।
                                ख
               गरी्सी- – बढ़िर |

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               सरलयिथ :- ह लक्ष्मि! स्ििखननलमखत भी लङ्िय मुझे रुथचिर नही लगती ह। (ियरि कि) जननी और
                                                                        िं

               जन्मभूलम स्िगख स भी बढ़िर ह।
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               SLOK-8

               पुस्तकस्िय तु ्य षिद््य परिस्तगतां धनम्।

               कय्थकयल समुत्पन्ने न सय षिद््य न तद्धनम्॥
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                                                                             े
               पदच्छद :- पुस्तिस्िय तु ्य षिद््य परहस्तगतिं धनम् िय्खियल समुत्पन्ने न सय षिद््य न
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               तद् धनम्।
               अन्ि्ैः – पुस्तिस्िय तु ्य षिद््य ( अन्स्त), परहस्तगतिं (च ्द्) धनम् (अन्स्त), (तद् उभ्म्

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               अषप ) िय्खियल समुत्पन्ने (सनत ) – न सय षिद््य न (च) तद् धनम् (स्िस्् उप्ोगय्
               भिनत ) ।
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