Page 4 - CH- PRITHIBYAM TRINI RATNANI (LIT)LN
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दि: – भयग्् ्य परमयत्मय ।
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एते – ् ।
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्त्र – जहयाँ ।
सहय्ि ृ त् – सहय्तय िरने ियलय ।
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सरलयिथ:- जहयाँ पररश्रम, सयहस, ध ्ख, बुद्थध, शन्क्त और परयक्रम- ् छह (चीज) ितखमयन ह, िहयाँ भयग््
ें
सहय्तय िरतय ह।
SLOK-6
षिद््य ददयनत षिन्ां षिन्यद््यनत पयत्रतयम् ।
पयत्रत्ियद्धनमयप्नोनत धनयद्धमं ततैः सुखम् ॥
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पदच्छदैः – षिद््य ददयनत षिन्िं षिन्यत् ्यनत पयत्रतय पयत्रत्ियत् धनम् आप्नोनत धनयत्
िं
धमखम् ततैः सुखम् ।
अन्ि्ैः – षिद््य षिन्िं ददयनत (मनुष््) षिन्यत् पयत्रतय ्यनत पयत्रत्ियत् धनम् आप्नोनत,
िं
धनयत् धमख ततैः सुखम् (च आप्नोनत) ।
भयियिथ:- षिद््य षिन्िं ददयनत षिन्ियरिेन जनैः ्ोग््तयिं प्रयप्नोनत, ्ोग््ैः जनैः सरलत्य
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धनम् अजख्नत, धनेन धमखम् आचरनत धमखस्् आचरिन जनैः सुख प्रयप्नोनत, अतैः षिद््य
िं
अिश््मि सुख ददयनत ।
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िं
शब्दयियथ:-
ददयनत – दती ह।
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्यनत – प्रयप्त होतय ह।
पयत्रतयम् – ्ोग््तय िो ।
आप्नोनत – प्रयप्त िरतय ह।
ततैः- तत्पश्चयत् ।
सरलयिथ:- षिद््य षिन् दती ह। षिन् से ्ोग््तय िो प्रयप्त होतय ह। ्ोग्् होने से
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(व्न्क्त) धन िो प्रयप्त िरतय ह। धन स धमख िो तिय तत्पश्चयत् सुख िो ( प्रयप्त िरतय
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ह)।