Page 1 - CH- PRITHIBYAM TRINI RATNANI (LIT)LN
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SAI International School
Class- VI
nd
Sub -Sanskrit(2 language)
LN
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SLOK-1
पृथिव्य त्रीणि रत्नयनन जलमन्नां सुभयषितम् ।
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मूढैः पयियिखण्डेिु रत्नसज्ञय षिधी्ते ॥
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पदच्छद :- पृथिव्य त्रीणि रत्नयनन जलम् अन्नम् सुभयषितिं मूढैः पयियि – खण्डेिु रत्न – सिंज्ञय
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षिधी्ते ।
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अन्ि्ैः – पृथिव्य जलम् अन्निं सुभयषितम् (इनत) त्रीणि रत्नयनन (सन्न्त) । मूढैः पयियिखण्डेिु
रत्नसिंज्ञय षिधी्ते ।
भयियिथ:-
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पृथिव्य त्रीणि रत्नयनन सन्न्त । तयनन रत्नयनन जलम् अन्निं सुभयषितिं च भिन्न्त । किन्तु
मूखखजनय: तु पयियिखण्डयन् रत्नयनन इनत िदन्न्त ।
शब्दयियथ:-
पृथिव्यम् – पृथ्िी पर ।
त्रीणि-तीन ।
मूढैः – मूखख लोगों ि द्ियरय।
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पयियि – पत्िर |
सिंज्ञय – नयम |
सरलयिथ:- पृथििी पर जल, अन्न और सुभयषित – ् तीन ही रत्न ह। मूखख लोगों ि द्ियरय (हीरय, मोती,
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पुखरयज आदद) पत्िर ि टुिडों िय नयम ‘रत्न’ दद्य ग्य ह।
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SLOK-2
अ्ां ननजैः परो िनत गिनय लघुचतसयम् ।
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उदयरचररतयनय तु िसुधि क ु टुम्बकम् ॥
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पदच्छद:- अ्िं ननजैः परैः िय इनत गिनय लघुचतसयम् उदयरचररतयनय तु िसुधय एि
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ि ु टुम्बिम्।