Page 5 - LN. -SHUKRA TARE KE SAMAN-2
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ककस तरह समय ननकालकर वे अपनी डायरी नलखते र्थे। कदन-प्रनतकदन की उनकी


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               डायरी की वे अननगनत अभ्यास पुस्तक आज भी मौजूद हैं। लेखक कहता है कक

               प्रर्थम श्रेिी की नशष्ट, संस्कार से संपन्न भाषा और मन को लुभाने वाली लेखनशैली



                                                                                                            े
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               महादेव को ईश्वर की अहम कपा से नमली र्थी। यद्यनप गांधीजी क पास पहुाँचने क
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                                                                                                           े
               बाद घमासान लडाइयों ,  आंदोलनों और समाचार-पत्रों की चचाषओं क भीड-भर
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               प्रसंगों क बीच कवल सानहनत्यक गनतनवनधयों क नलए उन्हें कभी समय नहीं नमला,
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               कफर भी गांधीजी की आत्मकर्था ‘सत्य क प्रयोग’ का अंग्रेज़ी अनुवाद उन्होंने ककया,


               जो ‘नवजीवन’ में प्रकानशत होने वाले मूल गुजराती की तरह हर हफ्ते यंग इनडया’
                                                                                                      ं
                                                                                               ‘


                                                                                 े
                                                                                                    े
               में छपता रहा। लेखक कहता है कक लेख की तरह छपने क बाद , पुस्तक क ऱूप में
               उसक अननगनत संस्करि सारी दुननया क देशों में प्रकानशत हुए और नबक। लेखक
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               कहता है कक सन् 1934-35 में गांधीजी वधाष क मनहला आश्रम में और मगनवाडी में


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                                                                                                            े
               रहने क बाद अचानक मगनवाडी से चलकर सेगााँव की सरहद पर लगे एक पेड क
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               नीचे जा बैठ। उसक बाद वहााँ एक-दो झोंपडे बने और कफर धीर-धीर मकान बनकर
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               तैयार हुए, जब तक यह काम हो रहा र्था तब तक महादेव भाई, दुगाष बहन और नच.


               नारायि क सार्थ मगनवाडी में ही रहे। वहीं से वे वधाष की सहन न की जाने वाली
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                                                                                                         े
               गमी में रोज़ सुबह पैदल चलकर सेवाग्राम पहुाँचते र्थे। वहााँ कदनभर काम करक शाम

               को वापस पैदल आते र्थे। लेखक कहता है कक वे लोग हर रोज जाते-आते पूर  11
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