Page 2 - LN. -SHUKRA TARE KE SAMAN-2
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                                                                  े
               कक वाइसराय क नाम जाने वाले गांधीजी क पत्र हमेशा महादेव की नलखावट में
                                                                                     े
               जाते र्थे। उन पत्रों को देख-देखकर कदल्ली और नशमला में बैठ वाईस रॉय भी ईर्षयाष

                                                                                                         ू
               क नशकार होते र्थे।  भले  ही उन कदनों भारत पर निरटश सल्तनत की पूरी हुकमत
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                                                                                         े
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               र्थी,  लेककन उस सल्तनत क  ‘छोट’  बादशाह को भी गांधीजी क सेक्रटरी यानन
               महादेव क समान सुन्दर अक्षर नलखने वाला लेखक कहााँ नमलता र्था                       ?  बडे-बडे
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               नसनवनलयन और गवनषर कहा करते र्थे कक सारी निरटश सर्ववसों में महादेव क समान
                                                                                                       े

               अक्षर नलखने वाला कहीं खोजने पर भी नमलता नहीं र्था। लेखक कहता है कक


               महादेव का शुद्ध और सुंदर लेखन पढने वाले को मंत्रमुग्ध कर देता र्था। लेखक कहता


                                                                                                   े
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               है कक महादेव क हार्थों क नलखे गए लेख ,  रटप्पनियााँ,  पत्र,  गांधीजी क भाषि,
               प्रार्थषना-प्रवचन, मुलाकातें, वाताषलापों पर नलखी गई रटप्पनियााँ, सब कछ कागज़ क
                                                                                                             े
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               एक आकार क चौर्थे भाग क आकार वाली मोटी अभ्यास पुस्तकों में, लंबी नलखावट
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               क सार्थ, जेट की सी गनत से नलखा जाता र्था। वे  ‘श ाटहैंड’ नहीं जानते र्थे। लेखक
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               कहता है कक बडेऺ-बडेऺ देशी-नवदेशी राजपुरुष, राजनीनतज्ञ, देश-नवदेश क सबसे आगे
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               रहने वाले समाचार-पत्रों क प्रनतनननध ,  अंतरष्ट्ीय संगठनों क संचालक ,  पादरी,

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               ग्रंर्थकार आकद गांधीजी से नमलने क नलए आते र्थे। ये लोग खुद या इनक सार्थी-संगी
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               भी गांधीजी क सार्थ बातचीत को ‘श ाटहैंड’ में नलखा करते र्थे। क्योंकक पूरी की पूरी
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               बातचीत को हु-ब-हु नलखना हर ककसी क बस की बात नहीं। लेखक कहता है कक
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