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3-जो ततनक हिा से बाग दहली
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लकर सिार उड जाता था |
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राणा की पुतली कफरी नही
तब तक चेतक मुड जाता था |
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शब्दाथण :ततनक -थोडा | बाग़ -लगाम |पुतली- आँख क बीच का कला भाग जजसक माध्यम
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से ककरण प्रिेश करती ह |
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व्याख्या : कवि कहते ह कक अगर हिा क माध्यम से भी घोडे की लगाम जरा सी भी दहल
जाती थी तो िह तुरत अपने सिारी को लकर अथात राणा प्रताप को लकर तीब्र गतत स
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उद्जता था अथणत बहत तेजी स उडने लगता था | प्रण प्रताप को जजस तरफ मुडना होता था
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िह उनकी आंखो की पुतली घूमने स पूिण ही उस ददसा म मुड जाता था ,कहने का तात्पयण
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यह ह ककचेतक अपने स्िामी की हर प्रतत कक्रया को भली भांतत समझता जाता था |
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4-कौशल ददखलाया चालों म
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उड गया भयानक भालों म।
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तनभीक गया िह ढालों म
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सरपट दौडा करिालों म।
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शब्दाथण : तनभीक – नीडर | सरपट- बहत तेज गतत स ।
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व्याख्या - कवि कहते ह कक चेतक ने अपनी कौशलता और िीरता का पररचय
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अपनी चाल क द्िारा ददखाया, तीव्र गतत स दौडना और तनडर होकर अपने शत्रुओं पर
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आक्रमण करना यह उसकी िीरता का स्मारक था। िह तनडर होकर युद्ध क समय म
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भयानक भालों और तलिारों स सुसजजजत शत्रुओं क बीच म जाकर उन पर प्रहार
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करता और नहरों, नालों आदद को पार करता हआ सरपट अथात बहत तेज गतत स
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बाधाओं म फ ँ सने क बाद भी िह तनकल जाता।
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5-ह यहीं रहा, अब यहाँ नहीं
िह िहीं रहा ह िहाँ नहीं ।
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थी जगह न कोई जहाँ नहीं
ककस अरर- मस्तक पर कहाँ नहीं।
शब्दाथण : अरर-शत्रु । मस्तक – माथा, ससर ।
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व्याख्या- कवि कहते ह कक युद्ध क क्षत्र म ऐसा कोई स्थान नही था जहा पर चेतक
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ने अपने शत्रुओं पर प्रहार न ककया हो। िह ककसी एक स्थान पर ददखता लककन जस
ही दूसर शत्रु ही आक्रमण करने क सलए िहा पहँचते तो िह तुरत िहा स गायब हो
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