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म जाकर उन पर प्रहार करता और नहरोंनालों आदद को पार करता हआ सरपट अथात बहत -
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तेज गतत से बाधाओं म फाँसने क बाद भी िह तनकल जाता ।युद्ध क क्षत्र म ऐसा कोई
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स्थान नही था जहा पर चेतक ने अपने शत्रुओं पर प्रहार न ककया हो। िह ककसी एक स्थान
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पर ददखता तो पर जस ही शत्रु उस पर आक्रमण करने क सलए िहा पहँचते तो िह िहा स
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तुरत गायब हो जाता कफर िह कही दूसरी जगह ददखता। ठीक उसी प्रकार बाद म िहाँ से भी
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गायब हो जाता। अतः िह युद्ध क सभी स्थलों पर अपनी िीरता का परचम लहराता था ।
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िह नदी की लहरों की भातत आग बढ़ता गया। िह जहा भी जाता क ु छ क्षण क सलए रुक
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जाता कफर अचानक विकराल, बबजली की चमक की तरह बादल का ऱूप धारण करक अपने
दुश्मनों पर प्रहार करता ।घोडे की टापों स दुश्मन पूरी तरह स घायल हो गए। उनक भाल
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और तरकस सभी ज़मीन पर पडे थे। चेतक की िीरता का ऐसा पराक्रम दखकर बैरी दल दग
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रह गया ।
1-रण– बीच चौकडी भर-भरकर
चेतक बन गया ननराला था।
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राणा प्रताप क घोडे से
पड गया हवा को पाला था।
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शब्दाथण : रण – युद्ध क्षत्र । चौकडी – छलांग ।
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व्याख्या – प्रस्तुत पजक्तया श्यामनारायण पाण्डेय द्िारा रगचत ‘चेतक की िीरता’ नामक
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कविता स उद्धृत ह । कवि इन पजक्तयों म चेतक की िीरता का िणणन करते हए यह कहते
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ह कक चेतक युद्ध क मदान म चौकडी भरकर अथिा छलाग लगाकर अपनी िीरता को
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ददखाता ह, उसक चलने क तीव्र गतत से ऐसा प्रतीत होता ह जैसे मानो िह हिा से बात कर
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रहा हो अथिा हिा से सामना कर रहा हो।
2-गगरता न कभी चेतक तन पर
राणा प्रताप का कोडा था।
वह दौड रहा अरर-मस्तक पर
या आसमान का घोडा था ।
शब्दाथण : तन -शरीर । अरर-शत्रु ।
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व्याख्या- कवि कहते ह कक राणा प्रताप का कोडा चेतक क तन पर कभी भी नहीं गगरता
था, क्योंकक िह इतना समझदार था कक अपने स्िामी की आज्ञा को भली-भाँतत समझ जाता
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था। िह शत्रुओं क मस्तक पर इस तरह स आक्रमण करता था जस मानो कोई आसमान स
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घोडा जमीन पर उतर आया हो अथात िह बहत तेजी स अपने शत्रुओं क ससर पर प्रहार
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करता था।