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ही। उन्द्होंने नवनती तुरत स्वीकार कर ली। लेखक कहता है दक गांधीजी का काम इतना बढ़ गया
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दक साप्तानहक पत्र भी कम पड़ने लगा। इसी कारण गांधीजी ने यंग इनडया’ को हफ्ते में दो बार
प्रकानशत करने का ननश्चय दकया । हर रोज का पत्र-व्यवहार और मुलाकातें, आम सभाएुँ आदद
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कामों क अलावा ‘यंग इनडया’ साप्तानहक में छापने क लेख, रटप्पनणयाुँ, पंजाब क मामलों का
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सार-संक्षेप और गांधीजी क लेख यह सारी सामग्री तीन ददन में तैयार करते। लेखक कहता है दक
‘यंग इनडया’ की सफलता को देखते हुए ‘नवजीवन’ क संपादक भी गांधीजी क पास आए और
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दोनों पनत्रकाएुँ अहमदाबाद से साप्तानहक ननकलने लगे। लेखक कहता है दक छह महीनों क नलए
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वह भी साबरमती आश्रम में रहने पहुुँिे। शुऱू में ग्राहकों क नहसाब-दकताब की और साप्तानहकों
को डाक में डलवाने की व्यवस्था लेखक क नजम्मे रही। लेदकन कछ ही ददनों क बाद संपादन
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सनहत दोनों साप्तानहकों की और छापाखाने की सारी व्यवस्था लेखक क नजम्मे आ गई। लेखक
कहता है दक गांधीजी और महादेव का सारा समय देश घूमने में बीतने लगा। गांधीजी और
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महादेव जहाुँ भी होते, वहाुँ से कामों और कायषक्रमों की भारी भीड़ क बीि भी समय ननकालकर
लेख नलखते और भेजते थे। लेखक कहता है दक सब प्रांतों क उग्र और उदार देशभि, क्रांनतकारी
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और देश-नवदेश क उत्तम गुणों से युि लोग , संवाददाता आदद गांधीजी को पत्र नलखते और
गांधीजी ‘यंग इनडया’में उनकी ििाष दकया करते थे। लेखक कहता है दक महादेव गांधीजी की
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