Page 3 - L .N-SHUKRA TRE KE SAMAN-1
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               गामदेवी क मनणभवन पर इकठॎठे आते रहते थे। महादेव उनकी बातों को नवस्तार से सुनकर छोटे


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               ऱूप में तैयार करक उनको गांधीजी क सामने पेश करते थे और आने वालों क साथ गांधीजी की
               आमने-सामने मुलाकातें भी करवाते थे। लेखक कहता है दक गांधीजी मुंबई क मुसय राष्ट्ीय
                                                                                            े


               अंग्रेजी दैननक ‘बाम्बे क्राननकल’ में इन सब नवषयों पर लेख नलखा करते थे। क्राननकल में लोग



               काफी लेख नलखा करते थे नजस कारण उसमे जगह की तंगी बनी रहती थी  । लेखक कहता है


               दक  कछ ही ददनों में  ‘क्राननकल’ क ननडर अंग्रेज संपादक हानीमैन को सरकार ने देश-ननकाले
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               की सजा देकर इग्लैंड भेज ददया। क्योंदक वह सभी क लेखों को ननडरता से छापा करता था िाहे

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               कोई लेख अंग्रेजी सरकार क नवरुद्ध ही क्यों न हो। लेखक कहता है दक शंकर लाल बैंकर, उम्मर

               सोबानी और जमनादास द्वारकादास उन ददनों बंबई क तीन नए नेता थे। इनमें अंनतम
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               जमनादास द्वारकादास श्रीमती बेसेंट क अनुयायी थे। ये नेता ‘यंग इनडया’ नाम का एक अंग्रेजी
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               पनत्रका भी ननकालते थे। ये पनत्रका सप्ताह में एक बार ननकाली जाती थी। लेदकन उसमें



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               ‘क्राननकल’ वाले हानीमैन ही मुसय ऱूप से नलखते थे। उनको देश ननकाला  नमलने क बाद इन

               लोगों को हर हफ्ते साप्तानहक क नलए नलखने वालों की कमी रहने लगी। क्योंदक अब कछ लोगों
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               क लेखों को छापा ही नहीं जाता था   । शंकर लाल बैंकर ,  उम्मर सोबानी और जमनादास



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               द्वारकादास तीनों नेता गांधीजी को बहुत मानते थे और उनक सत्याग्रह-आंदोलन में मुंबई क

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               बेजोड़ नेता भी थे। जो पुर आंदोलन क दौरान गांधीजी क साथ ही रहे। इन्द्होंने गांधीजी से
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               नवनती की दक वे ‘यंग इनडया’ क संपादक बन जाएुँ। गांधीजी को तो इसकी ससत जऱूरत थी
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