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गामदेवी क मनणभवन पर इकठॎठे आते रहते थे। महादेव उनकी बातों को नवस्तार से सुनकर छोटे
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ऱूप में तैयार करक उनको गांधीजी क सामने पेश करते थे और आने वालों क साथ गांधीजी की
आमने-सामने मुलाकातें भी करवाते थे। लेखक कहता है दक गांधीजी मुंबई क मुसय राष्ट्ीय
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अंग्रेजी दैननक ‘बाम्बे क्राननकल’ में इन सब नवषयों पर लेख नलखा करते थे। क्राननकल में लोग
काफी लेख नलखा करते थे नजस कारण उसमे जगह की तंगी बनी रहती थी । लेखक कहता है
दक कछ ही ददनों में ‘क्राननकल’ क ननडर अंग्रेज संपादक हानीमैन को सरकार ने देश-ननकाले
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की सजा देकर इग्लैंड भेज ददया। क्योंदक वह सभी क लेखों को ननडरता से छापा करता था िाहे
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कोई लेख अंग्रेजी सरकार क नवरुद्ध ही क्यों न हो। लेखक कहता है दक शंकर लाल बैंकर, उम्मर
सोबानी और जमनादास द्वारकादास उन ददनों बंबई क तीन नए नेता थे। इनमें अंनतम
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जमनादास द्वारकादास श्रीमती बेसेंट क अनुयायी थे। ये नेता ‘यंग इनडया’ नाम का एक अंग्रेजी
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पनत्रका भी ननकालते थे। ये पनत्रका सप्ताह में एक बार ननकाली जाती थी। लेदकन उसमें
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‘क्राननकल’ वाले हानीमैन ही मुसय ऱूप से नलखते थे। उनको देश ननकाला नमलने क बाद इन
लोगों को हर हफ्ते साप्तानहक क नलए नलखने वालों की कमी रहने लगी। क्योंदक अब कछ लोगों
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क लेखों को छापा ही नहीं जाता था । शंकर लाल बैंकर , उम्मर सोबानी और जमनादास
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द्वारकादास तीनों नेता गांधीजी को बहुत मानते थे और उनक सत्याग्रह-आंदोलन में मुंबई क
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बेजोड़ नेता भी थे। जो पुर आंदोलन क दौरान गांधीजी क साथ ही रहे। इन्द्होंने गांधीजी से
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नवनती की दक वे ‘यंग इनडया’ क संपादक बन जाएुँ। गांधीजी को तो इसकी ससत जऱूरत थी