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लेखक नगर में बसने वालों से कहता है-यकद तुम वास्तव में सच्चे देिभक्त हो तो
आस धूल को ऄपने माथे से लगाओ, ऄथागत् अम ग्रामीण व्यशक्त का सम्मान करो ।
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परतु यकद तुम आतना नहीं कर सकते तो कम-से-कम आनक बीच में रहो आनसे
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संपक न तोड़ो । आनका शतरस्कार न करो । आनका महत्त्व स्वीकार करो ।
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घन की चोट खाने पर भी न टटकर हीर ने ऄपनी दृढ़ता का पररचय कदया हैपर
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आसक बाद भी आनकी परख करने पर वह पलटकर वार भी कर सकता है तब तुम्हें
ईसका महत्त्व पता चलेगा । ऄभी शजसे धूल से मैला समझकर हेय समझ रहे हैं
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तब ईसकी कीमत का ज्ञान हो जाएगा । आससे कााँच और हीर का ऄंतर भी पता
लग जाएगा ।
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‘धूल’ पाठ क माध्यम से लेखक ने धूल को हेय नहीं श्द्धेय बताया है। पाठ क
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माध्यम से धूल की ईपयोशगता एवं महत्त्व को भी बताया गया है। धूल बचपन
की ऄनेकानेक यादों से जुड़ी है । िहरवाशसयों की चमक-दमक क प्रशत लगाव एवं
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धूल को हेय समझने की प्रवृशि पर कटाक्ष करते हुए लेखक ने कहा है कक िहरी
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सभ्यता अधुशनक बनने क नाम पर धूल से स्वयं ही दूर नहीं भागती बशल्क ऄपने
बच्चों को भी ईसक सामीप्य से बचाती है । धूल को श्द्धाभशक्त स्नेह अकद
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भावनाओं की ऄशभव्यशक्त क शलए सवोिम साधन बताया गया है। धूल हमें
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