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शनकल जाने क बाद धूले असमान में ऐसे छा जाती है मानो रुइ क बादल छा गए
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हों । या यों लगता है मानो वह ऐरावत हाथी क जाने क शलए बनाया गया तारों
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भरा मागग हो । चााँदनी रात में मेले पर जाने वाली गाशड़यों क पीछ धूल ऐसे
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ईठती है मानो कशव-कल्पना ईड़ान पर हो।
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लेखक ने ककसी पुस्तक शवक्रता द्वारा कदए गए शनमंत्रण पत्र में गोधूशल बेला का
ईल्लेख देखा तो ईसे लगा कक यह कशवता की शवडंबना है। कशवयों ने कशवता में
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बार-बार गोधूशल की आतनी मशहमा गाइ है कक पुस्तक शवक्रता महोदय ईस िब्द
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का प्रयोग कर बैठ । परतु सच यह है कक िहरों में न तो गाएाँ होती हैंन गोधूशल
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बेला । ऄतः यह गोधूशल िब्द कवल कशवता क गुणगान को सुनकर प्रयुक्त हुअ
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है ।
शमट्टी आस भौशतक संसार की जननी है । ऱूप, रस, गंध, स्पिग क सभी भेद आसी
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शमट्टी में से जन्म लेते हैं। शमट्टी क दो ऱूप हैं-ईज्ज्वल तथा मशलन शमट्टी की जो
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अभा है, ईसका नाम है धूल। यह शमट्टी का श्ृंगार है। यह एक प्रकार से शमट्टी की
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उपरी परत है जो गोधूशल क समय असमान में ईड़ती है या चााँदनी रात में
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गाशड़यों क पीछ-पीछ ईठ खड़ी होती है । यह फलों की पंखुशड़यों पर या शििुओं
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क मुख पर श्ृंगार क समान सुिोशभत होती है ।