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आस पाठ में लेखक ने नगरीय सभ्यता पर यह व्यंग्य ककया है कक नगर में बसने
वाले लोग आस बात से डरते हैं कक धूल ईन्हें गंदा न कर दे । वे सोचते हैं कक धूल
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क संसगग से ईनकी चमक-दमक फीकी पड़ जाएगी। मैले होने क डर से वे ऄपने
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शििुओं को भी धूल से दूर रखते हैं ।
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ग्रामीण पररवेि में प्रकशत धूल क द्वारा ऄनेक सुंदर शचत्र प्रस्तुत करती है जब
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ऄमराआयों क पीछ शछपे सूयग की ककरणें धूल पर पड़ती हैं तो ऐसा लगता है कक
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मानो अकाि में सोने की परत छा गइ हो । सूयागस्त क बाद लीक पर गाड़ी क
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