Page 1 - Microsoft Word - TOPIC- 4 PARYABARAN - NOTES
P. 1

SAI INTERNATIONAL SCHOOL
                                                      ND
                                      CLASS – IX 2  LANGUAGE SANSKRIT
                                                     CHAPTER – 11


                                          एकादश: पाठ: - पया वरणम्



                                     ृ
                                                                                                               ै
             paragaph 1        कित: समेषां  ािणनां संर णाय यतते | इयं सवा न् पु णाित िविवधै:  कार:
             तप यित  च  सुखसाधनै:  |  पृिथवी,  जलं,  तेजो,  वायु:  आकाश ा या:   मुखािन  त वािन  |  ता येव
                                             ं
             िमिल वा  पृथकतया    वाS माक  पया वरणं  रचयि त  |  आि यते  प रत:  सम तात्  लोकोSनेिनित
                                                                                                 ु
                                                                                                              ृ
             पया वरणम्  |  यथाSजातिशशु:  मातृगभ   सुरि त  ित ित  तथैव  मानव:  पया वरणक ौ  |  प र कतं
                                                                                  ं
                                                          ं
              दुषणरिहतं  च  पया वरणम म यं  सांसा रक  िजवनसुखं  ,  सि चार  ,  स यसंक पं  ,  मा गिलक
                                                                                                            ं

                                    ृ
             साम ी   ददाित |  कितकोपै: आति कतो जन:  क कतु  भवित ? जल लावनै: , अि भयै, भूकपै: ,
                      ै
             वा याच : , उ कापाता दिभ  स त  य मानव य   म गलम् |

                      ृ
                                                 े
             अथ  –  कित सब  ािणय  क  र ा क िलए  य  करती है | यह िविभ   कार  से सबको पु  करती है
                                                                                              े
                                    ृ
             तथा सुख-साधन   से  त  करती है |  ु वी , जल, तेज , वायु  और आकाश  ये इसक  मुख त व है | वे
                                              े
                                                                                   े

                                                                  े
             िह िमलकर या अलग अलग हमार पयावरण को बनात है | संसार िजसक  ारा सब ओर से आ छा दत

                                                    े
              कया जाता है , वह पयावरण कहलात है | िजस  कार अज मा (िजसने अभी ज म नह  िलया है )
                                े

                                                                         ु
             िशशु अपनी माता क गभ  म  सुरि त रहता है , उिस  कार मन य पयावरण क  कोख म  सुरि त रहता
                                                                                                  े
                      ृ

             है | प र कत (शु ) तथा  दुषण से रिहत पयावरण  हमे सांसा रक िजवन – सुख, अ छ िवचार, अ छ                े
                                                       ृ
             संक प तथा मा गिलक साम ी देता है |  कित
                             ु
                                                                                ं
              े
                                   ु
             क  ोध  से  ाकल मन य  या कार सकता है ? बाढ , अि भय , भुकप , आं धी – तुफान  तथा उ का
                          े
                                                                       ्
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             आ द क िगरन से संत  (दुखी ) का काहां क याण है ? अथा त कह  नह  |
                                                                            े
             श दाथ ः समेषां- सब,  ािणनां-  ािणय  क , संर णाय - र ा क िलए, यतते- कोिशश करती है, इयं-
                                                                           ै
                                                                                                              ृ
             यह, सवा न्- सिभको, पु णाित-पोषण करतीहै , िविवधै:  कार: - िविभ   कार  से, तप यित – त
                                                             े
                  ु
             (स त ) करती है , तेज: - अि , रचयि त - बनात है |
             आि यते – आ छा दत  कया जाता है , प रत: - चार  तरफ़ से , सम तात् - चार  तरफ़ से, लोको –
                                                                   े
                                                                                                  ु
             संसार , अजातिशशु: - अज मा िशशु, मातृगभ  - माता क गभ  म , सुरि त: – सुरि त, क ौ - गभ  म  ,
                                                                                                        े
                   ृ
                                                                     ं
                                                                             े
             प र कतं - शु ,  दुषणरिहतं -  दुषण से रिहत , सि चार - अ छ िवचार, स यसंक पं - अ छ संक प,
                                                                                                          ु
                                                                             े
                                                                        ृ
                                                          ृ
             मा गिलक साम ीम् - मा गिलक साम ी,  कितकोपै:  -  कित क  ोध  से, आति कत: -  ाकल ,
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