Page 5 - LESSON NOTES - MANUSHYATA - 1
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ुधात रितदेव ने दया कर थ थाल भी,
तथा दधीिच ने दया पराथ अि थजाल भी।
उशीनर ि तीश ने वमांस दान भी कया,
सहष वीर कण ने शरीर-चम भी दया।
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अिन य देह क िलए अना द जीव या डर?
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वही मनु य है क जो मनु य क िलए मर।
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ुधात - भूख से परशान
कर थ - हाथ क
पराथ - पूरा
अि थजाल - हि य का समूह
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उशीनर ि तीश - उशीनर देश क राजा िशिब
सहष - ख़ शी से
शरीर चम - शरीर का कवच
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ा ा - किव कहता ह िक पौरािणक कथाए ऐस ओं क उदाहरणों स भरी पड़ी ह
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िज ोंन अपना परा जीवन दसरों क िलए ाग िदया िजस कारण उ आज तक याद िकया जाता
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ह। भख स परशान रितदव न अपन हाथ की आखरी थाली भी दान कर दी थी और महिष दधीिच
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न तो अपन पर शरीर की हि या व बनान क िलए दान कर दी थी। उशीनर दश क राजा िशिब
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न कबतर की जान बचान क िलए अपना मास दान कर िदया था। वीर कण न अपनी ख़शी स े
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अपन शरीर का कवच दान कर िदया था। किव कहना चाहता ह िक मन इस न र शरीर क
िलए ों डरता ह ोंिक मन वही कहलाता ह जो दसरों क िलए अपन आप को ाग दता ह ।
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का सौ य
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1-किव न परोपकार की मह ा को समझान क िलए पौरािणक सगो का उ ख िकया ह।
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2-स तिन खड़ी बोली का योग आ ह।
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3-का ाश म ा अलकार का योग िकया गया ह।
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सहानुभूित चािहए, महािवभूित है यही;
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वशीकता सदैव है बनी ई वयं मही।