Page 6 - Lesson Note
P. 6
एक बार उस शूद्र ने भगिान शंकर क े मखन्दर में अपने गुरु, अथाकत् खजस ब्राह्मण क े साथ िह
े
रहता था, का अपमान कर कदया। इस पर भगिान शंकर ने आकाशिाणी करक उसे शाप दे
कदया कक रे पापी! तूने गुरु का खनरादर ककया है इसखलये तू सपक की अधम योखन में चला
जा और सपक योखन क े बाद तुझे 1000 बार अनेक योखन में जन्म लेना पड़े। गुरु बड़े दयालु
े
थे इसखलये उन्होंने खशि जी की स्तुखत करक अपने खशष्य क े खलये क्षमा प्राथकना की। गुरु क े
े
िारा क्षमा याचना करने पर भगिान शंकर ने आकाशिाणी करक कहा, "हे ब्राह्मण! मेरा शाप
व्यथक नहीं जायेगा। इस शूद्र को 1000 बार जन्म अिश्य ही लेना पड़ेगा ककन्तु जन्मने और
मरने में जो दुुःसह दुुःख होता है िह इसे नहीं होगा और ककसी भी जन्म में इसका ज्ञान
े
ु
नहीं खमटगा। इसे अपने प्रत्येक जन्म का स्मरण बना रहेगा जगत् में इसे कछ भी दुलकभ न
ृ
होगा और इसकी सिकत्र अबाध गखत होगी मेरी कपा से इसे भगिान श्री राम क े चरणों क े
प्रखत भखक्त भी प्राप्त होगी।"
ु
े
इसक पश्चात् उस शूद्र ने खिन्ध्याचल में जाकर सपक योखन प्राप्त ककया। कछ काल बीतने पर
उसने उस शरीर को खबना ककसी कष्ट क े त्याग कदया िह जो भी शरीर धारण करता था उसे
खबना कष्ट क े सुखपूिकक त्याग देता था, जैसे मनुष्य पुराने िस्त् को त्याग कर नया िस्त् पहन
लेता है। प्रत्येक जन्म की याद उसे बनी रहती थी। श्री रामचन्द्र जी क े प्रखत भखक्त भी उसमें
उत्पन्न हो गई। अखन्तम शरीर उसने ब्राह्मण का पाया। ब्राह्मण हो जाने पर ज्ञानप्राखप्त क े खलये
िह लोमश ऋखि क े पास गया। जब लोमश ऋखि उसे ज्ञान देते थे तो िह उनसे अनेक
क
े
ु
क
ु
प्रकार क े तक-कतक करता था। उसक इस व्यिहार से कखपत होकर लोमश ऋखि ने उसे शाप
दे कदया कक जा तू चाडडाल पक्षी (कौआ) हो जा। िह तत्काल कौआ बनकर उड़ गया। शाप
देने क े पश्चात् लोमश ऋखि को अपने इस शाप पर पश्चाताप हआ और उन्होंने उस कौए को
िापस बुला कर राममन्त्र कदया तथा इच्छा मृत्यु का िरदान भी कदया। कौए का शरीर पाने
क े बाद ही राममन्त्र खमलने क े कारण उस शरीर से उन्हें प्रेम हो गया और िे कौए क े ऱूप
में ही रहने लगे तथा काकभुशुखडड क े नाम से खिख्यात हऐ।