Page 5 - Lesson Note
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काकभुशुखडड
काकभुशुखडड [[श्रीरामचररतमानस। संत तुलसीदास जी ने रामचररतमानस क े उत्तरकाडड में
खलखा है कक काकभुशुखडड परमज्ञानी रामभक्त हैं। रािण क े पुत्र मेघनाथ ने राम से युद्ध करते
हये राम को नागपाश से बाुँध कदया था। देिर्षि नारद क े कहने पर गऱूड़, जो कक सपकभक्षी थे,
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ने नागपाश क े समस्त नागों को प्रताखड़त कर राम को नागपाश क े बंधन से छड़ाया। राम क े
इस तरह नागपाश में बुँध जाने पर राम क े परमब्रह्म होने पर गरुड़ को सन्देह हो गया।
गरुड़ का सन्देह दूर करने क े खलये देिर्षि नारद उन्हें ब्रह्मा जी क े पास भेजा। ब्रह्मा जी ने
उनसे कहा कक तुम्हारा सन्देह भगिान शंकर दूर कर सकते हैं। भगिान शंकर ने भी गरुड़ को
उनका सन्देह खमटाने क े खलये काकभुशुखडड जी क े पास भेज कदया। अन्त में काकभुशुखडड जी ने
राम क े चररत्र की पखित्र कथा सुना कर गरुड़ क े सन्देह को दूर ककया। गरुड़ क े सन्देह समाप्त
हो जाने क े पश्चात् काकभुशुखडड जी गरुड़ को स्ियं की कथा सुनाया जो इस प्रकार है A
पूिक क े एक कल्प में कखलयुग का समय चल रहा था। उसी समय काकभुशुखडड जी का प्रथम
जन्म अयोध्या पुरी में एक शूद्र क े घर में हआ। उस जन्म में िे भगिान खशि क े भक्त थे
ककन्तु अखभमानपूिकक अन्य देिताओं की खनन्दा करते थे। एक बार अयोध्या में अकाल पड़ जाने
पर िे उज्जैन चले गये। िहाुँ िे एक दयालु ब्राह्मण की सेिा करते हये उन्हीं क े साथ रहने
लगे। िे ब्राह्मण भगिान शंकर क े बहत बड़े भक्त थे ककन्तु भगिान खिष्णु की खनन्दा कभी
नहीं करते थे। उन्होंने उस शूद्र को खशि जी का मन्त्र कदया। मन्त्र पाकर उसका अखभमान
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और भी बढ़ गया। िह अन्य खिजों से ईष्याक और भगिान खिष्णु से द्रोह करने लगा। उसक
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इस व्यिहार से उनक गुरु (िे ब्राह्मण) अत्यन्त दुुःखी होकर उसे श्री राम की भखक्त का
उपदेश कदया करते थे।