Page 5 - LESSON NOTES-SAMAS
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               जहा समस्तपद क े पवपि में सख्यावाचक क्षवशषण ह ता है, वहा क्षद्वग समास ह ता ह। क्षवग्रह करत समय
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                                                                  ै
               इस समास में समह अथवा समाहार शब् का प्रय ग ह ता ह।
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                                                                              ू
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               चक्षक क्षद्वग  समास भी तत्परुष समास का ही उपभद है; अत: इसका भी पवपद गौण तथा
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               उत्तरपद प्रधान ह ता ह।
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                                                                              ु
               क्षद्वग समास’ तथा ‘कमिारय समास’ में सबस बड़ा अतर यही है क्षक क्षद्वग समास
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               का पवपद सख्यावाची लवशषण ह ता है जबक्षक कमिारय समास का पवपद अऩॎय क ई भी क्षवशषण ह
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               सकता ह।
                                                                                             ै
                                                                          ू
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               सबस महत्वपण बात यह है क्षक क्षद्वग समास का उत्तिपद लकसी समह का बोध किाता ह। यक्षद क्षवग्रह
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               करत समय उत्तरपद क े साथ समह या समाहाि शब् का प्रय ग नहीं क्षकया गया ह
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               त  पवपद सख्यावाची होत हुए भी यह ‘कमधािय समास’ कहिाएगा। ‘क्षद्वग समास’ क े उदाहरण
                 े
               दक्तखए –
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                      पचवटी: पाच वट वि ं का समह।
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                      सप्ताह: सात क्षदन ं का समह।
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                      लिभवन: तीन ल क ं का समह।
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                      सप्तशती: सात सौ का समह।
                      अठन्नी: आठ आन ं का समाहार।
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                      पञ्चप्रमाण: पाच प्रमाण ं का समह।
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                      सतमलिि: सात मक्षजल ं का समह।

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               5- िि समास
                                                                                              े
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               क्षजस समस्तपद में द न ं पद समान ह ं, वहा द्वद्व समास ह ता ह। इसम द न ं पद ं क  क्षमलात समय मध्य-
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               क्तथथत य जक लप्त ह  जाता ह।  द्वद्व समास में क ई पद गौण नहीं ह ता बक्ति द न ं ही पद प्रधान ह त  े
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               समस्तपद बनात समय द न ं पद ं क  ज ड़नवाल समच्चयब िक अव्यय ं-‘और’, ‘तथा’, ‘या’ आक्षद क
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                                                                                                ै
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               हटा क्षदया जाता है तथा क्षवग्रह करत समय इनक  पनः  द न ं पद ं क े बीच ज ड़ क्षदया जाता है; जस- राम-
               श्याम. इसका क्षवग्रह ह गा- राम और श्याम।
               • क्षदन-रात - क्षदन और रात
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               • जल-वाय - जल और वाय   ु
               • माता-क्षपता - माता और क्षपता
               • तन-मन - तन और मन
               • नर-नारी - नर और नारी
               • दादा-दादी - दादा और दादी
               • लाभ-हाक्षन - लाभ या हाक्षन
               • अमीर-गरीब - अमीर और गरीब
               6- बहुव्रीलह समास
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               जहा पहला पद और दसरा पद क्षमलकर क्षकसी तीसर पद की ओर सकत करत हैं, वहा बहुव्रीक्षह समास
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               ह ता ह। द न ं पद ं में से क ई भी पद प्रिान नहीं ह ता। तीसरा पद प्रिान ह ता है तथा क्षदए गए द न ं पद ं
                                                                                         े
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               का क्षवशष्य ह ता ह। कमिारय व क्षद्वग समास में एक क्षवशषण ह ता है और दसरा क्षवशष्य, जबक्षक बहुव्रीक्षह
                                                                             ै
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               समास में द न ं पद क्षवशषण ह त हैं तथा क ई तीसरा पद क्षवशष्य ह ता ह।
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               • पीताबर - पील हैं वस्त् क्षजसक (श्रीकष्ण)
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               • चतभज - चार हैं भजाए क्षजसकी (क्षवष्ण)
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               • क्षिल चन - तीन आख ं वाला (क्षशव)
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               • दीघ-बाहु - लम्बी भजाओं वाला (क्षवष्ण)
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