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क व आग कहता ह क यहाँ क पहा ड़य स अनक झरने बहते ह, जो इसक ाक ृ तक शोभा
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को बढ़ाते ह। ह रयाल स भर हए इन जंगल और झा ड़य म च ड़य क चहचहाहट गूँजती
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रहती ह, िजससे वातावरण आनंदमय और जीवंत तीत होता ह। भारत क इस ाक ृ तक
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सुंदरता को दखकर मन ह ष त हो उठता ह |.
का यांश –3
अमराइयाँ घनी ह
कोयल पुकारती ह,
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बहती मलय पवन ह,
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तन-मन सँवारती ह।
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वह धम भू म मर ,
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वह कम भू म मर ।
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वह ज मभू म मेर
वह मातृभू म मर ।
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या या –
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तुत पंि तय म क व ने भारत क ाक ृ तक सुदरता का च ण कया ह। पहल पंि त म
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क व भारत क हर भर क ृ त का वण न करता ह , जहाँ घने आम क बाग अपनी शीतल
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छाया दान करते ह। इन बाग म कोयल अपनी मधुर वाणी म गान करती ह, िजसस
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वातावरण संगीत से गूज उठता ह। मंद (द ण स चलन वाल शीतल हवा) मंद मलय पवन-
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वा हत होती ह, जो न कवल शर र को शीतलता दान करती ह, बि क मन को भी
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स नता और फ ू त स भर दती ह।
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इसक बाद, क व अपने दश क धा म क और नै तक महानता को रखां कत करता ह। भारत
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को कहा गया ह ”धम भू म“, य क यह धा म कता का क रहा ह। साथ ह , इसे ”कम भू म“
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भी कहा गया ह, य क यह प र म और वीरता का तीक ह। यह वह भू म ह जहाँ क व
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ने ज म लया और िजस वह अपनी क प म स मान दता ह। ”मातृभू म“
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का यांश – 4
ज म जहाँ थ रघुप त,
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ज मी जहाँ थी सीता,
ीक ृ ण ने सुनाई,
वंशी पुनीत गीता।
गौतम ने ज म लेकर,
िजसका सुयश बढ़ाया,
जग को दया सखाई,
जग को दया दखाया।