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ँ
                    ऊचा खड़ा  हमालय
                                   ै
                    आकाश चूमता ह,
                    नीचे चरण तले झुक,
                                      ै
                     नत  संधु झूमता ह।
                    गंगा यमुन   वेणी

                    न दयाँ लहर रह  ह,
                    जगमग छटा  नराल ,

                    पग पग छहर रह  ह।

                     या या –
                                                                                          ं

                      तुत पंि तय  म क व ने भारत क  भौगो लक  वशेषताओं और  ाक ृ  तक सुदरता का

                                            े
                                   ै
                    गुणगान  कया ह। भारत क उ र म ि थत  वशाल और गौरवशाल   हमालय पव त को क व
                    ने ऐसा दशाया ह मानो वह आकाश को चूम रहा हो, जो दश क  शि त और अ डगता का
                                   ै

                                                                         े
                                 ं
                                                                                      े
                           ै
                     तीक ह। वह , द  ण  दशा म ि थत  वशाल  हंद महासागर  हमालय क चरण  म झुककर


                                      े
                    लहर  क मा यम स अपने उ लास को  कट करता हआ इतरा रहा ह।
                                                                                   ै
                           े
                                                                    ु
                    क व ने भारत क  प व  न दय गंगा —, यमुना और सर वती क   वणी संगम क  म हमा का
                                                                                 े
                                                                            े
                                ै
                    वण न  कया ह। इन न दय  का कलकल  वाह और उनक  जगमगाती छटा सम त धरती पर
                                           े
                                                ै
                    एक अनुपम सु  ंदरता  बखरती ह। पव तीय झरन  क  मधुर  व न और न दय  क  लहर  क
                                                                                ै
                    चंचलता भारत क   ाक ृ  तक संपदा को और अ धक भ य बनाती ह।

                    का यांश –2
                    वह पु यभू म मर -,
                                  े
                    वह  वण भू म मर ।-
                                   े
                    वह ज मभू म मेर
                                  े
                    वह मातृभू म मर ।
                    झरने अनेक झरते
                    िजसक  पहा ड़य  म,

                     च ड़या चहक रह  ह,

                          ँ
                    हो म त झा ड़य  म।


                     या या –

                      तुत पंि तय  म क व ने अपनी ज मभू म भारत क  महानता और प व ता का
                                     े
                                                                े
                    भावना मक  प स वण न  कया ह। क व अपने दश को पु यभू म कहकर -भू म और  वण -
                                                  ै
                                                                                     े
                                                                                                     े
                    इसका गौरव बढ़ाता ह। यह वह  भू म ह जहाँ क व ने ज म  लया, िजस वह अपनी माँ क
                                       ै
                                                        ै
                    समान पू य मानता ह और िजससे उसका गहरा आ मीय संबंध ह।
                                                                                ै
                                        ै
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