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टहनटहनाना – घोड़े की आवाज
                                  े
               परस्पर – एक दूसर क े साथ, आपस में
               व्याख्या –

                                                                        िं
               रात  का  तीसरा  पहर  बीत  चुका  था।  चौथा  पहर  क े  आरभ  होते  ही  बाबा  भारती  ने  अपनी
                                        िं
                                                                      े
               क ु हटया से बाहर ननकल ठडे पानी से स्नान ककया। उसक बाद रोज़ की तरह जैसे कोई सपने
                                    े
                                                                              े
               में चल रहा हो, उनक पाँव घोड़े को बाँिने क े स्थान की ओर बढ़। अथातत बाबा भारती आदत
                                                                                       े
                                                                                            िं
               से  मजबूर  बबना  क ु छ  सोचे  रोज  की  तरह  सुलतान  की  ओर  जाने  लग।  परतु  दरवाजे  पर
                                                                                 ें
               पहँचकर उनको अपनी भूल का एहसास हआ। इसक साथ ही उन्ह अत्यचिक दुुःि भी हआ
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               और उनक पाँव को उनक दुुःि ने अत्यचिक भारी बना हदया। वे दरवाजे पर ही रुक गए।
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               परन्तु घोड़े ने अपने स्वामी क े पाँवों की आहट को पहचान सलया और वह ज़ोर से आवाज
               करने लगा। अब बाबा भारती आश्चयत और प्रसन्नता से दौड़ते हए अिंदर घुस और अपने घोड़े
                                                                                          े
                                                                              ु
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               क े गल से सलपटकर इस प्रकार रोने लग जैसे कोई वपता बहत हदन से बबछ्ड़े हए आपने पुत्र
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                                                                                             ु
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               से समल रहा हो। वे बार-बार उसकी पीठ पर हाथ फर रह थे और बार-बार सुल्तान क े मुँह पर
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                                                                      े
                                                                                                     े
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               थपककयाँ दते हए कह रह थे कक अब कोई गरीबों की सहायता से मुँह न मोड़ेगा। थोड़ी दर क े
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                                                                                       े
               बाद जब वे अस्तबल से बाहर ननकल तो उनकी आँिों से आँसू बह रह थे। ये आँसू उसी
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               भूसम पर ठीक उसी जगह चगर रह थे, जहाँ बाहर ननकलने क े बाद िड्गससिंह िड़ा होकर रोया
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               था। दोनों क े आँसुओिं का उस भूसम की समट्टी पर एक दूसर क े साथ मेल हो गया था।
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               Learning outcome :
                   1-  दीन-दुखियों की सवा और सहयोग करना
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                   2-  छल–कपट न करना
                   3-  लोगों पर ववश्वास करना
                  4- हार की जीत म नैनतक जीत को समझना
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                  5- अपने क्जिंदगी म ककसी को िोिा नहीिं दना ।
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                   6-  जो हम पर ववश्वास कर उन्ह िोिा नहीिं दना ।
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                   7-  गलती पर पश्चाताप करक सुिार करना |
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