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नाईं – तरह
               खयाल – ववचार

               सन्नाटा – गहरी शाक्न्त
               टटमटटमाना – जगमगाना

               बाग – लगाम
               फाटक – दरवाजा

               पश्चाताप – अपनी गलती का एहसास होने पर मन में होने वाला दुुःि

               व्याख्या –
                                                                      े
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               सुलतान को िड्गससिंह क े हवाल करक बाबा भारती चल गए। परतु उनक शब्द िड्गससिंह क े
                                                                               िं
               कानों में उसी प्रकार बार-बार ककसी प्रनतध्वनन की तरह सुनाई पड़ रह थे। वह सोच रहा था
                                                                                    े
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                                   ँ
               कक बाबा क े कसे ऊचे ववचार हैं, कसा पववत्र भाव ह! तयोंकक बाबा को सुलतान से इतना
                                                   ै
                              ै
               अचिक प्रेम था, कक उसे दिकर उनका मुि ककसी फ ू ल की तरह खिल जाता था। वे कहते थे
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               कक सुलतान क े बबना वे नहीिं रह सकते। जब िड्गससिंह ने सुलतान को लने की बात कही थी
                                                                                       े
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               तब वे सुलतान की रिवाली में कई रात सोए नहीिं थे। उन्होंने भजन-भक्तत छोड़ कर कवल
                                               िं
               रिवाली का काम ककया था। परतु आज सुलतान को छोड़ते समय उनक मुि पर दुुःि की
                                                                                       े
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               एक रिा तक हदिाई नहीिं पड़ी थी। उन्ह कवल यह ववचार था कक कहीिं लोगों को इस घटना
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               का पता चल गया तो लोग गरीबों पर ववश्वास करना छोड़ न द। यह सब सोचता हआ रात
                                                                                                  ु
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               क े अँिेर में िड्गससिंह बाबा भारती क े मिंहदर में पहँचा। चारों ओर गहरी शाक्न्त थी। आकाश
                                                                  ु
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               में तार जगमगा रह थे। थोड़ी दूर पर गाँवों क े क ु त्त भौंक रहे थे। मिंहदर क े अिंदर से कोई शब्द
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               सुनाई नहीिं दे रहा था। िड्गससिंह सुलतान की डोर पकड़े हए था। वह िीर-िीर घोड़े को बाँिने
                                                                                      े
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               क े स्थान पर पहचा और उसक दरवाज़े को िोलने लगा। दरवाजा िुला पड़ा था। एक समय
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                                             े
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               था जब बाबा भारती िुद लाठी लकर वहाँ पहरा दते थे, परतु आज उन्ह ककसी चोरी, ककसी
                                                                          िं
                                                                                       ें
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               डाक का कोई डर नहीिं था। िड्गससिंह ने आग बढ़कर सुलतान को उसक स्थान पर बाँि हदया
               और बाहर ननकलकर साविानी से दरवाजा बिंद कर हदया। इस समय िड्गससिंह की आँिों में
               अपनी गलती का एहसास होने पर मन में होने वाला दुुःि क े आँसू थे।
               पाठािंर्
               रात्रि का तीसरा पहर बीत चुक-----------समट्टी पर परस्पर मेल हो गया।
               र्ब्दार्श –
               पहर –  समय की एक इकाई
               क ु टटया – झोंपड़ी
               मन-मन-भर – (मन-तौल मापक) अत्यचिक भारी
               घोर – अत्यचिक
               पाँवों की चाप – पाँव की आहट
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