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               प्रस्तुत पक्ततया कवि गोपाल क ृ ष्ण कौल जी क द्िारा रचचत कविता  पहली ब ूँद  स उद्धृत
                                                                                                 े
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               ह | यहा िर्ा ऋतु क आगमन पर धरती म आए पररिततन क सौंदयत का िणतन फकया गया ह
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                                                                                                        े
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               | इन पक्ततयों क माध्यम स कवि कहते ह फक ग्रीष्म ऋतु क बाद िर्ा ऋतु क आगमन स
                                                         ैं
                                                                          े
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               चारों तरफ़ आनंद ऱूपी हररयाली िली ह | िर्ा की पहली ब ूँद जब धरती पर आती ह तो
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               धरती क अंदर तछप बीज म स अंक ु र ि   टकर बाहर तनकल आता ह | मानो िह बीज नया
                                  े
               जीिन पाकर अूँगडाई लकर जाग गया हो |
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               काव्ाांश -2
               2- धरती क स ख अधरों पर,
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               चगरी ब ूँद अमृतसी आकर   -,
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               िसुधरा की रोमािमल -,
               हरी द ब, पुलकी मुसकाई |
               पहली ब ूँद धरा पर आई |

               व्याख्या &
                                 ैं
               आग कवि कहते ह फक धरती क स ख होंठों पर बाररश की ब ूँद अमृत क समान चगरी, मानो
                                                                                    े
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               िर्ा होने स बजान और स खी पडी धरती को निीन जीिन ही ममल गया हो | धरती ऱूपी
               सुदरी क रोमों की पक्तत की तरह हरी घास भी मुसकाने लगी तर्ा खुमशयों स भर उठी |
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                                                                                           े
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               पहली ब ूँद क ु छ इस तरह धरती पर आई, क्जसका ख बस रत एहसास और पररणाम धरती को
               ममला |
               काव्ाांश -3
               आसमान म उडता सागर,
                           ें
               लगा बबजमलयों क स्िखणतम पर,
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                                   े
               बजा नगाडे जगा रह ह,
                                     ैं
               बादल धरती की तरुणाई |
               पहली ब ूँद धरा पर आई |
               व्याख्या –
                                                            े
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                              ूँ
               प्रस्तुत पक्ततया कवि गोपाल क ृ ष्ण कौल जी क द्िारा रचचत कविता  पहली ब ूँद  स उद्धृत
               ह | यहा िर्ा ऋतु क आगमन पर धरती म आए पररिततन क सौंदयत का िणतन फकया गया ह
                                                         ें
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               | इन पंक्ततयों क माध्यम से कवि कहते ह फक आसमान म जल ऱूपी बादलों म बबजली
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               चमक रही ह | जस सागर बबजमलयों क सुनहर पख लगाकर आसमान म उड रहा हो |
               बादलों की गजतन सुनकर ऐसा आभास होता ह फक िे नगाडे बजाबजाकर धरती की यौिनता                  -
                                                            ै
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                 को जगा रह ह|
               काव्ाांश -4
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