Page 5 - LN-KICHAD KA KAVYA-2
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सारथी की भूवमका वनभाई और भगिद्गीता का ज्ञान कदया जो उनक जीिन की सियश्रेष्ठ रचना मानी
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जाती है। 124 िषों क जीिनकाल क बाद उन्होंने अपनी लीला समाप्त की। उनक अितार समावप्त क
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तुरत बाद परीवक्षत क राज्य का कालखुंड आता है। राजा परीवक्षतजो अवभमन्यु और उिरा क पुि तथा
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अजुयन क पौि थे, क समय से ही कवलयुग का आरभ माना जाता है।
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िसुदेि यदुिुंशी शूर तथा माररषा क पुि, कष्ण क वपता, कती क भाई और मथुरा क राजा उग्रसेन क
मुंिी थे । इनका वििाह देिक अथिा आहुक की सात कन्याओं से हुआ था वजनमें ेिकी सियप्रमुख थी। िे
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िृवष्णयों क राजा ि यादि राजकमार थे। [1] हररिुंश पुराण क मुतावबक, िासुदेि और नन्द बाबा ररश्ते
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में भाई थे । [2] िसुदेि क नाम पर ही कष्ण को 'िासुदेि' (अथायत् 'िसुदेि क पुि') कहते हैं। िसुदेि क
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जन्म क समय देिताओं ने आनक और दुुंदुवभ बजाई थी वजससे इनका एक नाम आनकदुुंदुवभ' भी पड़ा।
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िसुदेि ने स्यमुंतपुंचक क्षेि में अश्वमेध यज्ञ ककया था। कष्ण की मृत्यु से उवद्वग्न होकर इन्होंने प्रभासक्षेि
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में देहत्याग ककया ।
मही नदी
माही नदी पविमी भारत की एक प्रमुख नदी हैं । माही का उद्गम मध्यप्रदेश क धार वजला क समीप
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वमन्डा ग्राम की विध्याचल पियत श्रेणी से हुआ है। यह दवक्षणी अरािली में जयसमन्द झील से प्रारम्भ

