Page 4 - LN-KICHAD KA KAVYA-2
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 कीचड़ का काव्य’ पाठ का उद्देश्य यह है कक मनुष्य कीचड़ को हेय समझकर उसका वतरस्कारन



                  कर। िह इस बात को हमेशा ध्यान में रखे उसे पोषण देने िाला अन्न कीचड़ में हीपैदा होता है ।
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                  कीचड़ घृणा की िस्तु नहीं हो सकती है। अतः कीचड़ को हेय न मानकरश्रद्धेय मानना चावहए ।







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           कष्ण




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           श्रीकष्ण भगिान विष्णु क 8िें अितार और वहन्दू धमय क ईश्वर माने जाते हैं। कन्हैया, श्याम, गोपाल,
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           कशि, द्वारकश या द्वारकाधीश, िासुदेि आकद नामों से भी उनको जाना जाता हैं। कष्ण वनष्काम
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           कमययोगी, एक आदशय दाशयवनक, वस्थतप्रज्ञ एिुं दैिी सुंपदाओं से सुसज्ज महान पुरुष थे। उनका जन्म



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           द्वापरयुग में हुआ था। उनको इस युग क सियश्रेष्ठ पुरुष युगपुरुष या युगाितार का स्थान कदया गया है।


           कष्ण क समकालीन महर्षष िेदव्यास द्वारा रवचत श्रीमद्भागित और महाभारत में कष्ण का चररि
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           विस्तुत ऱूप से वलखा गया है। भगिद्गीता कष्ण और अजुयन का सुंिाद है जो ग्रुंथ आज भी पूर विश्व में
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           लोकवप्रय है। इस कवत क वलए कष्ण को जगतगुरु का सम्मान भी कदया जाता है। कष्ण सुदेि और
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           देिकी की 8िीं सुंतान थे। मथुरा क कारािास में उनका जन्म हुआ था और गोकल में उनका लालन
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           पालन हुआ था। यशोदा और नन्द उनक पालक माता वपता थे। उनका बचपन गोकल में व्यवतत हुआ।
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           बाकय अिस्था में ही उन्होंने बड़े बड़े कायय ककये जो ककसी सामान्य मनुष्य क वलए सम्भि नहीं थे। मथुरा
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           में मामा कस का िध ककया। सौराष्ट् में द्वारका नगरी की स्थापना की और िहाुं अपना राज्य बसाया।


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           पाुंडिों की मदद की और विवभन्न आपवियों में उनकी रक्षा की। महाभारत क युद्ध में उन्होंने जुयन क
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