Page 3 - LN-KICHAD KA KAVYA-2
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मनुष्य कीचड़ का नाम लेते ही उसक प्रवत वतरस्कार का भाि प्रकट करने लगता है िह कीचड़
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से दूरी बनाए रखता है। परतु उसे इसका ध्यान नहीं रहता कक उसको अनाजउसी कीचड़ से
उगता है । इस बात का ज्ञान होते ही िह कीचड़ का वतरस्कार करना बुंद करदेगा ।
कीचड़ में हमारा भोजन अन्न उगता है। इसक वबना भूखों मरने की वस्थवत उत्पन्न होजाएगी ।
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कीचड़ क गुंदेपन पर नहीं बवकक उसकी उपयोवगता और सौंदयय पर विचार करuk pkfg, ।
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इसक अलािा पुंक क वबना पुंकज (कमल) कहााँ होता । यकद कीचड़ न होता तो हम उसक े
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सौंदयय से ही िुंवचत gks tkrs ] अवपतु पवक्षयों और जीि जुंतुओं क चलने से कीचड़ परवचवित
अद्भुत वचि को भी देखने से िुंवचत रह जाते। इन कारणों से मैं कीचड़ कोश्रद्धेय समझता हाँ।
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खुंभात में यही नदी क आसपास पाया जाने िाला असीवमत दूरी तक फला है। egh unh d
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feysxk A जहााँ तक द`वि जाती है, बस कीचड़ ही कीचड़ नज़र आता है। इस कीचड़ में हाथी तो
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क्या पहाड़ भी डब जाएाँगे जबकक गुंगा एिुं अन्य नकदयों क ककनार bruh ज्यादा मािा में कीचड़
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नहीं है ।
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कविगण सौंदयय और उपयोवगता क आधार पर िस्तुओं को ही महत्त्ि देते हैं। िे यह बाह्यसौंदयय
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ही देखते हैं, आुंतररक नहीं । ये िस्तुएाँ कहााँ से पैदा हुई है, उनक स्रोत से उनका कोई मतलब
नहीं। िे कहते हैं कक पुंकज, िासुदेि, हीरा और मोती की प्रशुंसा तो ठीकहै पर इनक उत्पवि
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स्रोत कीचड़, िसुदेि, कोयला और सीप की प्रशुंसा क्यों कर।लेखक का मानना है कक बाहjh
सौंदयय क द`fिा इन कवियों से इस बात को करना हीबेकार है ।
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