Page 3 - LESSON NOTES - AB KAHAN DUSRO KE DUKH SE DUKHI HONE WALE - 2
P. 3
लेखक कहता है क बचपन म उनक मा हमेशा कहती थी क जब भी सूरज ढले
ँ
े
अथात शाम क समय पेड़ से प े नह तोड़ने चािहए य क उस समय य द प े तोड़ोगे तो
े
पेड़ रोते ह । दया-ब ी क समय अथात पूजा क समय फल को नह तोड़ना चािहए य क
े
ू
उस समय फल को तोड़ने पर फल ाप देते ह । नदी पर जाओ तो उसे नम कार करनी
ू
ू
चािहए वह खुश हो जाती है। कभी भी कबूतर को परेशान नह करना चािहए य क
े
कबूतर हज़रत मुह मद को ब त यारे ह । हज़रत मुह मद ने कबूतर को अपनी दरगाह क
े
गोलकार िशखर पर रहने क इज़ाज़त दी ई है। मुग को भी कभी परशान नह करना
े
चािहए य क वह मु ला जी से पहले ही पूर मोह ले को बांग दे कर जगाता है।
सबक पूजा एक सी अथा त चाहे हदु हो या मुि लम या फर सीख हो या ईसाई ।
सभी एक ही ई र का गुणगान करते ह ।कवल तरीका अलग होता है।कोई मं दर,तो कोई
े
मि जद,कोई िगरजा तो कोई गु ार जाता है। इसिलए कहा जाता है क रीत अलग
े
है।उसी कार मौलवी मि जद म जाकर लोग को अलI ह क इबादत सुनाकर स करता
ु
े
ै
है वैसे ही कोयल बाग म , पेड़ म बठकर अपन मधर बोल से सबको स करती है। किव
ृ
ै
े
े
ु
े
का मानना ह िक कित क सार ाणी काम तो अलग-अलग करत ह पर सबका ल एक
े
ै
े
ही ह -- ई र को अपन कम स स करना I सभी ाणी तो अपना-अपना ाभािवक कम
े
ु
ु
ै
े
े
े
ु
करत पाए जात ह पर मन ही अपन धम--मन ता स भटक गया ह I
े
वािलयर म हमारा एक मकान था…..……………………………..सबको बाँट काम।।
लेखक का कहना है क वािलयर से बंबई क बीच समय क साथ काफ बदलाव ए
े
े
े
ह । वस वा म जहाँ लेखक का घर है, वहाँ लेखक क अनुसार कसी समय दूर तक जंगल ही
े
े
जंगल था। पेड़-पौध थे, पशु-प ी थे और भी न जान कतने जानवर थे। अब तो यहाँ समु
े
े
क कनार कवल ल बे-चौड़े मानव ब या बस गई ह । इन ब यों ने न जाने कतने पशु-
े
ं
ु
पि य से उनका घर छीन िलया है। इन पशु-पि य म से कछ तो शहर को छोड़ कर चले
गए ह और जो नह जा सक उ ह ने यह कह पर अ थाई घर बना िलए ह । अ थाई इसिलए
े
य क कब कौन उनका घर तोड़े कर चला जाये कोई नह जनता। इन म से ही दो कबूतर
ने लेखक क लैट म एक ऊचे थान पर अपना घ सला बना रखा है। उनक ब े अभी छोट े
े
ँ
े
ह । उनक पालन-पोषण क िज मेवारी उन बड़ कबतर क थी। बड़ कबूतर दन म ब त
े
े
ू
े
े
बार उन छोट कबूतर को खाना िखलाने आते जाते रहते थे। और आए-जाए य न ! यह
े
े
उनका भी तो घर था। ले कन उनक आने-जाने क कारण लेखक और लेखक क प रवार को
े
ब त परशानी होती थी। कभी कबूतर कसी चीज़ से टकरा जाते थे और चीज़ को िगराकर
े