Page 2 - LESSON NOTES - SAKHI - 1
P. 2

साखी

                                          ऐसी बाँणी बो लय, मन का आपा खोइ।
                                                              े
                                       अपना तन सीतल कर, औरन क  सुख होइ।।
                                                                ै
                                          क तूर  क ुं ड ल बसै, मृग ढ ूँढ बन माँ ह।
                                                                         ै
                                         ऐस  घ ट घ ट राँम ह, दु नयाँ दखै नाँ ह।।
                                                                 ै
                                                                            े
                                      जब म  था तब ह र नह ं, अब ह र ह  म  नाँ ह।

                                    सब अँ धयारा  म ट गया, जब द पक द या माँ ह।।
                                                                               े
                                           सु खया सब संसार ह, खायै अ  सोवै।
                                                                  ै

                                           दु खया दास कबीर ह, जागै अ  रोवै।।
                                                                  ै
                Lkadsr & ,slh ok.kh…………………………………………………………………..lq[k gksb A

               ‘kCnkFkZ & बाँणी – बोल ,  आपा – अहम ्  (अहकार ),  खोइ –  याग करना,
                                                                  ं
                                सीतल – शीतल ( ठडा ,अ छा ),  औरन – दूसर  को, होइ -होनk
                                                   ं
               O;k[;k & मीठ  वाणी का  भाव चम का रक होता ह। मीठ  वाणी जीवन म
                                                                            ै
                                                          ै
               आि मक सुख व शां त  दान करती ह। मीठ  वाणी मन से  ोध और घृणा क
                                                                                                       े
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                                       ै
               भाव न ट कर दती ह। इसक साथ ह  हमारा अंत:करण भी  स न हो जाता ह।
                भाव  व प और  को सुख और शीतलता  ा त होती ह। मीठ  वाणी क  भाव से
                                                                              ै
                                                                                                े
               मन म  ि थत श ुता, कट ुता व आपसी ई या - वेष क भाव समा त हो जाते ह ।
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               Lkans’k &ok.kh dh e/kjrk thou esa ‘kkafr vkSj lq[k iznku djrh gS A
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               Lkadsr & dLrwjh…………………………………………………………………..uk¡fg A

               ‘kCnkFkZ &    क ुं डल  – ना भ, मृग –  हरण, घ ट घ ट – कण कण

               O;k[;k & हमारा मन अ ानता, अहकार,  वला सताओं म  डूबा ह। ई वर सब ओर
                                                        ं
                                                                                       ै
                                                                       े
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                या त ह। वह  नराकार ह। हम मन क अ ान क कारण ई वर को पहचान नह ं
                         ै
               पाते। कबीर क मतानुसार कण-कण म   छपे परमा मा को पाने क  लए  ान का
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                                                                                         े
                                                                                             े
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               होना अ यंत आव यक ह। अ ानता क कारण िजस  कार मृग अपन ना भ म
               ि थत क तूर  पूर जंगल म  ढ ूँढता ह , उसी  कार हम अपन मन म   छपे ई वर कks
                                   े
                                                                                  े
               मं दर, मि जद, गु  वारा सब जगह ढ ूँढने क  को शश करते ह ।
               Lkans’k & bZ’oj dk okl izR;sd ân; esa gksrk gS A
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