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SAI INTERNATIONAL SCHOOL

                                                 CLASS- IXth, SLRC

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                                             2   LANGUAGE- HINDI

                                                    MIND MAP-2

                                             शीषषक –तुम कब जाओगे, अतततथ



                                                                      पाठ का सार



               लेखक क े घर एक अतततथ आए। अतततथ क े सत्कार में लेखक और उनकी पत्नी की ओर से कोई

               कमी नहीं की गई। इस उम्मीद से कक अतततथ आते ही हैं शीघ्र जान क े तलए। लेककन अतततथ जा
                                                                                 े
                                                                                 े
                                                                                                   ें
               नहीं  रहे  हैं। लेखक  को  अब  शंका हो  रही  है  कक  अतततथ  न  जान  ककतन  कदन  ठहरगे।  लेखक
                                                                                         े
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               अतततथ क े कछ कदन टिकन और स्थायी होन की आशंका से डर ही रहे थे कक अतततथ ने और
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               अतधक ठहरने का संकत कदया। अतततथ ने कपड़े गंदे होन की बात कही और उसकी धुलाई क े
                                                                                        ऺ
               तलए धोबी की चचाष की। लेखक ततलतमला तेा गए लेककन लाण्ड्री से कपडे धुलाकर घर ला देना
                                                                                                      ै
               उतचत समझा। लेककन अब भी अतततथ चले जाएँग, इसकी कोई गारिी न थी। लेखक आर उनकी
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                                                                े
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               पत्नी अतततथ से परशान हो चुक थे।
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               कल तक तजस अतततथ क े प्रतत यह भाव था कक अतततथ देवतुल्य होत हैं, अब यह तस्थतत हो गई
                                                                                  े
               वही कक अतततथ राक्षस प्रतीत होन लगे। इस व्यंग्य क े माध्यय से लेखक ने आज क े अतततथयों की
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               तनलषज्जता को स्पष्ट ककया है। प्रततष्ठा माँगन से नहीं तमलती बतल्क जब प्रतततष्ठत व्यति जैसा
               आचरण ककया जाता है तब उस व्यवहार से मुग्ध होकर अन्य लोग स्वय ही उस व्यति को
                                                                                     ं
               प्रततष्ठा देत हैं।
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               लेखक ने यह भी कदखाया है कक अल्प अवतध तक क े अतततथ शानदार आततथ्य क े भागीदार होत              े

               हैं, लेककन दीघषकाल तक आततथ्य का सुख-भोग करने का तजनका इरादा होता है वैसे अतततथ

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               मेजबान क े द्वारा अपमातनत भी होत हैं। लेखक ने एक और बात स्पष्ट कर दी है कक दूसरों क े घर
               में रहकर सत्कार पाना सबको अच्छा लगता है। इसका यह अथष नहीं कक सभी अपना घर
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                                                                                                       े
               छोड़कर दूसर क े घर ही रहना आरम्भ कर दें। लेखक ने यह भी बताया है कक इज्जत तमलन का
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                                                                                           े
               यह मतलब नहीं कक इज्जत जहाँ तमले, वहा और तसर चढ़ जाए। इज्जत माँगन से नहीं तमलती
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