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ननष्ट्कर्ष:
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पाठ का तनटकर्क यह ह कक सच्ची खल भािना और राटरप्रेम क सार्थ, हम ककसी भी लक्ष्य
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को प्राप्त कर सकते ह।
गदयांश
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खेल क मैदान ------------------------------------------------------------------ पूर दश की ह |
व्याख्या –
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मेजर ध्यानचंद क संस्मरण की एक घिना उन्होंने अपने संस्मरण म इस घिना का उल्लख
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ककया ह कक सन ् 1933 म िे पंजाब रब्जमि की ओर से खेला करते र्थे। एक हदन ‘पंजाब
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रब्जमि’ और ‘सैंपसक एंड माइनसक िीम’ क महज हॉकी क खल का मुकाबला हआ। माइनसक
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िीम क खखलाड़ी तनरतर ध्यानचंद से गद छीनना चाह रह र्थे लककन हर बार असफल रह।
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उनक एक खखलाड़ी को इतना गुस्सा आ गया कक उसने गुस्स म आकर ध्यानचंद क भसर म
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हॉकी की ब्स्िक मार दी।
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ध्यानचंद चोि खाकर उत्साही बने रह और पट्िी बँििाकर कफर स खल क मदान म आ
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पहँचे। उन्होंने अपने एक अलग ही अंदाज म उस खखलाड़ी स यह कहा कक मैं अपनी इस
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चोि का बदला अिश्य लूँगा । उसक बाद उन्होंने इतने जोश और उत्साह से गोल भलया कक
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लगातार छह गोल करक ‘सैंपसक एड माइनसक िीम को बुरी तरह मात दी।
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हॉकी का जादूगर – नए नाम की उपाधि प्राप्त करना- बभलकन ओलंवपक म लोग इनक हॉकी
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खेलने क ढग स इतने प्रभावित हए कक उन्ह ‘हॉकी का जादूगर’ कहना शुऱू कर हदया। यह
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उपाधि उन्ह इसभलए भी भमली तयोंकक िे स्ियं आग बढ़ने क सार्थ-सार्थ दूसरों को भी आग
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बढ़ाना चाहते र्थे। ‘हॉकी’ खल म गद दूसरों तक पहँचाते ताकक उनक साधर्थयों को भी जीतने
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का श्रय भमल।
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ध्यानचंद क जीिन का गुरुमत्र – उन्होंने अपने जीिन म सफलता की सीहढ़याँ चढ़ने का
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गुरुमत्र यह बताया कक लगन, सािना और खल भािना ही मनुटय को ऊचाइयों की ओर लकर
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जाते ह।
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मेजर ध्यानचंद का जीिन पररचय एिं हॉकी खेल क क्षेत्र म पदापकण – मेजर ध्यानचंद का
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जन्म सन ् 1904 म प्रयाग क एक सािारण पररिार म हआ। बाद म इनका पररिार झासी
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जाकर बस गया। 16 िर्क की आयु म य ‘फस्ि ब्राह्मण रब्जमि’ म सािारण भसपाही क ऱूप
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म शाभमल हए। इस रब्जमि क सूबदार मजर ततिारी र्थ। इस रब्जमि का ‘हॉकी खेल’ म बड़ा
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नाम र्था ।
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ततिारी जी उन्ह सदा उन्ह हॉकी खेलने क भलए प्रेररत करते रहते र्थे। रब्जमि क सभी
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भसपाही ककसी भी समय हॉकी खेलने क भलए तैयार रहते र्थे। ध्यानचंद ने भी नौभसखखया
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खखलाड़ी की भातत खलना शुऱू कर हदया। िीर-िीर उनक खेल म तनखार आता गया और िे
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उच्च खखलाडड़यों की श्रणी म आने लग और जल्द ही बभलकन ओलंवपक िीम क कप्तान बन
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