Page 3 - CH- BUDHI SARBATHA SADHIKA (LIT) LN
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नतष्ठनत – रहते ह।
                               ैं
               तदहाः – तो
               प्रदशायतु – ददखाइए ।
               दशानाय – दखने क ललए।
                          े
                                े
               प्रनतबबम्ब-परछाई ।
               अन्यत्र – और कह ं ।
               पुनः- किर ।

               कदावप – कभी भी ।
               उक्ति् – कहा गया।

               सरलार्ा:- गजराज पूछता ह – िैं कस ववश्वास कर ाँ ? क्या सच ि चंरिा सरोवर ि रहता ह?
                                                                             ें
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                                                                                                      ै
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               यदद सरोवर चंरदव का ननवास मथान ह तो वह ददखाइए । खरगोश कहता ह – हााँ। चंरिा क
               दशान क ललए हि दोनों अभी ह  सरोवर की ओर चलते ह।
                                                                       ैं
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                                                                   ै
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               गजराज शशकराज क साथ सरोवर क सिीप जाता ह। वह जल ि चंरिा का प्रनतबबंब दखता
                                                                          ै
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               ह और चककत होता ह। वह भय से चंरिा को निन करता ह। उसक बाद वह गजराज क
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                                                                             े
                                                                                                 ै
               साथ और कह ं जाता ह । वह गजराज किर कभी उस सरोवर क सिीप नह ं आता ह।
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               खरगोश वहा सुखपूवाक रहते ह। सत्य ह  कहा गया ह-
                           ाँ
                                             ैं
                                                                   ै
               “बुद्चध स सभी काया लसद्ध हो जाते ह “।
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                                                                            000
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