Page 2 - CH- BUDHI SARBATHA SADHIKA (LIT) LN
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Paragraph-2
एकस्मिन् ददन ------------------------------------------------- एव चन्रः प्रसन्नः भवनत । ”
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शब्दार्ाा:-
सायङ्काले – शाि को ।
सभा – िीद ंग |
मवितं – अपना ववचार ।
प्रकाशयस्न्त – प्रक करते ह।
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सिाधानं – हल |
प्राप्नुवस्न्त – प्राप्त करते ह।
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अधुना – अब
अन्यस्मिन् – दूसर ददन ।
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रात्रौ – रात ि।
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यूथाचधपमय- सिूह क सरदार क ।
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वासमथानि् – रहने का मथान ।
शशाङ्कः – चन्रिा ।
तमय- उसकी।
नाम्ना – नाि से।
जीवस्न्त – जीववत ह।
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सरलार्ा:- एक ददन सांयकाल ि उन खरगोशों की सभा होती ह। सभी खरगोश अपना ववचार
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प्रक करते ह। पर वे सिमया का सिाधान प्राप्त नह ं कर पाते ह। अंत ि खरगोशों का
राजा कहता ह िैं ह उपाय सोचता हाँ। इस सिय हि सभी अपने घर जाते हैं।
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दूसर ददन रात ि वह खरगोशों का राजा हाचथयों क सिूह क राजा क पास जाता ह। वह
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गजराज से कहता ह- ” ह गजराज ! यह सरोवर चंरिा का ननवास मथान ह। हि खरगोश
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उसकी प्रजा ह अतः वह चन्रिा इस नाि से प्रलसद्ध ह। जब खरगोश जीववत ह तब ह
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चंरिा प्रसन्न होता ह।
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Paragraph-3
गजराजः पृच्छनत–“कथि् अह -------------------------------- उक्ति्- ‘बुद्चधः सवाथासाचधका’ ।
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शब्दार्ाा: –
गजराजः – हाचथयों का राजा ।
ववश्वास – ववश्वास |