Page 2 - DOHE-LESSON NOTES
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कबीरदास न उपर्युक्त दोह म गयऱू का महत्व समझार्ा ह।
                                े
                                               े
                                                   ें
                                                                                  ै
                                                                                     े
                                                                                             े
                                                             ै
               कबीरदास जी कहते ह कक गयरु क य म्हार ह और शिष्र् शमट्टी क कच्च घडे क
                                        ैं
                                                                                                     े
                                                               े
                         ै
               समान ह। गयऱू भीतर स हाथ का सहारा दकर बाहर स चोट मार मारकर साथ
                                          े
                                                                             े
                                                       ै
               ही शिष्र्ों की बयराई को ननकालते ह। गयरु ही शिष्र् क चररत्र का ननमाुण करता
                                                                           े
               है, गयरु क अभाव म शिष्र् एक माटी का ट यकड़ा ही होता ह जजस गयरु एक घड़े
                                       ें
                                                                                   ै
                           े
                                                                                         े
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                                                                          ैं
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                                   ैं
               का आकार दते ह, उसक चररत्र का ननमाुण करते ह। सत्गयऱू ही शिष्र् की
                                                  ें
                                                                           ै
                                      े
                                          ं
               बयराईर्ो कों दूर करक ससार म सम्माननीर् बनाते ह।
                                                         ें
                                                                                           े
               अक्सर हम उन लोगों की कम्पनी म रहना पसंद करते हैं जो हमार प्रिर् होते
                                                 ैं
                                                                                                    े
                                                                                               ैं
               ह... जो हमारी तारीफ करते ह र्ा हमार भीतर शसफ गयण ही खोजते ह। लककन
                                                                          ु
                                                            े
                 ैं
                            ें
               इस दोह म कबीर दास र्ह समझा रह हैं कक जो व्र्जक्त आपकी ननंदा करता
                                                          े
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                                                                                       े
                                                                                  ै
               है, जो व्र्जक्त हर समर् आपक भीतर कशमर्ां तलािता ह उस हमेिा अपन
                                                   े
                                                                                                      े
                                                                                                  े
                                                           ै
               पास रखना चाहहर्। क्र्ोंकक एक वही ह जो बबना साबयन र्ा बबना पानी क
                                    े
                                                             ै
               आपक स्वभाव को ननमुल बना सकता ह....आपक भीतर की हर कमी को दूर
                      े
                                                                      े
               कर सकता ह।
                              ै
               इसका र्ह भावाथु ह कक  कबीर दास जी हम र्ह समझाते ह कक हमेिा ऐसी
                                                                  ें
                                                                                     ैं
                                      ै
                                                                                              ें
                                                                   े
                            े
                                                                      े
                                                                                  े
               भाषा बोलन चाहहए जो सामने वाल को सयनन सअच्छा लग और उन्ह सयख की
                                                       े
               अनयभूनत हो और साथ ही खयद को भी आनद का अनयभव हो।
                                                                ं
               वषाु ऋतय को दखकर कोर्ल और रहीम क मन न मौन साध शलर्ा ह। अब तो
                                                                                              ै
                                                                        े
                                                              े
                                े
               मढक ही बोलन वाल ह। हमारी तो कोई बात ही नहीं पूछता। अशभिार् र्ह ह
                                         ैं
                                 े
                                                                                                       ै
                 ें
                                       े
                                      े
                                                                                             ै
               कक क य छ अवसर ऐस आते ह जब गयणवान को चयप रह जाना पड़ता ह, उनका
                                               ैं
               कोई आदर नहीं करता और गयणहीन वाचाल व्र्जक्तर्ों का ही बोलबाला हो जाता
                 ै
               ह।
               बैर] िीनत] अभ्र्ास और र्ि इनक साथ संसार म कोई भी जन्म नहीं लता। र्
                                                                                                  े
                                                      े
                                                                                                         े
                                                                        ें
               सारी चीजें तो धीर-धीर ही आती ह।
                                    े
                                                      ैं
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