Page 2 - HA-HAMID KHAN-2
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कह सकता । हहदू हमें आततामययों कक औलाद समझते है । लेखक ने उसका नाम



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               पूछा तो उसने अपना नाम हाममद खााँ बताया ।चारपाई पर उसक अब्बाजान लेट र्े


               ।



                           हाममद खााँ ने खाने की तैयारी का आदेश कदया । वह धीमे जवर मे बोला-



               “जामलमो की इस दुमनया में शैतान भी लुक-मछपकर चलता है ।आप ईमान से




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               मुहब्बत क नाते मेर होटल में खाना खाने आये है । अगर हहदू मुसलमान आपस में

               ईमान से मुहब्बत करते तो ककतना अच्छा होता ।”



                           तभी एक लडका र्ाली में चावल लाकर रख गया । हाममद खााँ ने तीन




               चार चपामतयााँ रख दीं और लोहे की तश्तरी में सालन परोसा । साफ़ पानी से भरा



               एक कटोरा भी रख कदया । लेखक ने बडे चाव से भरपेट खाना खाया उसने पैसे देने




               चाहे तो हाममद खााँ बोला भाई जान ! माफ़ कीमजएगा, पैसा नही लूाँगा आप मेर
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               मेहमान है ।” लेखक पैसे देने पर अडा र्ा । उसने कवल एक रूपये का नोट सकचाते

               हुए मलया । कफ़र उसे लौटा कदया । वह बोला-“भाई जान, मैंने खाने क पैसे आपसे ले
                                                                                                े



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               मलये है, मगर मैं चाहता हाँ कक यह आपक ही हार्ों में रहे । जब आप पहुाँचे तो ककसी
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