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ही रक्षक व सहायक होती है । वहााँ एक अधेड उम्र का पठान अाँगीठी क पास मसर
झुकाये चपामतयााँ बना रहा था । वह लेखक को घूरकर देखने लगा । वह अपनी
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तीखी नजरों क साथ लेखक को घूर रहा था । लेखक क मुसकराने पर भी उसक
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हाव- भाव जब नहीं बदले तो लेखक ने धीमी आवाज में पूछा-“ खाने को कछ
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ममलेगा ?” दुकान क आदमी ने बेंच की तरफ़ इशारा करते हुए कहा-“चपाती और
सालन है ।” लेखक बेंच पर बैठ कर रूमाल से हवा करने लगा । दुकान क भीतर
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झाकने पर बेढंगा लीपा हुआ आंगन धूल से सनी दीवार कदखी और वहााँ चारपाई पर
एक गंदे तककये पर कोहनी टटकाये एक बूढा व्यमि हुक्का पी रहा था । हुक्क की गड-
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गडाहट में वह पूरी तरह मदहोश था । उस अधेड आदमी ने पूछा-“भाई जान ! आप
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कहााँ क रहने वाले है ? लेखक ने बताया कक वह मालाबार का रहने वाला है । उस
पठान ने कहा-“ यह महन्दुस्तान में ही है ना । लेखक ने हााँ में जवाब कदआ ।उस
व्यमि ने शंका जामहर की कक वह हहदू होकर मुसलमानी होटल में खाना खायेगा ।
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लेखक ने ‘हा’ करते हुए कहा कक हमार यहााँ बकढया चाय या बकढया पुलाव क मलये
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मुसलमानी होटल में जाते है ।