Page 3 - LN-HAMID KHAN-1
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               ही रक्षक व सहायक होती है । वहााँ एक अधेड उम्र का पठान अाँगीठी क पास मसर


               झुकाये चपामतयााँ बना रहा था । वह लेखक को घूरकर देखने लगा । वह अपनी




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                                                                                                       े
                                                                                   ु
                                                                            े
               तीखी नजरों क साथ लेखक को घूर रहा था । लेखक क मुसकराने पर भी उसक
                                                                                                   ु
               हाव- भाव जब नहीं बदले तो लेखक ने धीमी आवाज में पूछा-“ खाने को कछ


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               ममलेगा ?”  दुकान क आदमी ने बेंच की तरफ़ इशारा करते हुए कहा-“चपाती और



               सालन है ।” लेखक बेंच पर बैठ कर रूमाल से हवा करने लगा । दुकान क भीतर
                                                                                                े


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               झाकने पर बेढंगा लीपा हुआ आंगन धूल से सनी दीवार कदखी और वहााँ चारपाई पर


               एक गंदे तककये पर कोहनी टटकाये एक बूढा व्यमि हुक्का पी रहा था । हुक्क की गड-
                                                                                                 े



               गडाहट में वह पूरी तरह मदहोश था । उस अधेड आदमी ने पूछा-“भाई जान ! आप



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               कहााँ क रहने वाले है ? लेखक ने बताया कक वह मालाबार का रहने वाला है । उस



               पठान ने कहा-“ यह महन्दुस्तान में ही है ना । लेखक ने हााँ में जवाब कदआ ।उस



               व्यमि ने शंका जामहर की कक वह हहदू होकर मुसलमानी होटल में खाना खायेगा ।



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               लेखक ने ‘हा’ करते हुए कहा कक हमार यहााँ बकढया चाय या बकढया पुलाव क मलये
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                             ाँ

               मुसलमानी होटल में जाते है ।
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