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‘तक्षमशला में आगजनी’......................................होटल में जाया करते
है ।”
लेखक ने समाचार पत्र मे तक्षमशला (पाककस्तान) में आगजनी की खबर को पढा तो
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हाममद खााँ की याद आ गयी। भगवान से उसकी कशलता की प्राथषना की । दो साल
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पहले लेखक तक्षमशला क खंडहर देखने गया था । वहााँ क कडकडाती धूप में भूख-
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प्यास से वह बेहाल हो गया था, करीब पौन मील चलकर वह एक गााँव मे पहुाँचा ।
यहााँ गमलयो से भरा एक तंग बाजार था । जहााँ कहीं देखो गंदगी का ढेर, धुआाँ,
मच्छर ही थे । कहीं तो चमडे की सडी बदबू ने लेखक का स्वागत ककया । वहााँ लम्बे
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कद क पठान मस्त चाल से चल रहे थे ।चारों तरफ़ देखने पर भी कहीं कोई होटल
नही कदखा, मन में मवचार आया की गााँव में होटल की क्या आवश्यकता । उसने
अचानक देखा कक एक दुकान पर चपामतयााँ सेकी जा रही थी । लेखक चपामतयों की
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सौंधी महक को सूाँघकर दुकान की और मुड गया । वह दुकान क अंदर मुसकराता
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हुआ घुस गया । अनुभवों द्वारा लेखक यह जान चुका था कक परदेश में मुसकराहट