Page 1 - LN-EK PHOOL KI CHAHA-2
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SAI INTERNATIONAL  SCHOOL

                                                       CLASS- IX

                                               nd
                                             2   LANGUAGE- HINDI

                                                  LESSON NOTE -2
                                                                 ू
                                                     शीर्षक –एक फ़ल की चाह

                                                     कवि- वियारामशरण गुप्त




                   े
                          ू
               मेर दीपफल लेकर       -……………………………तुझको दे न िका मैं हा!


               इन पंवियों में कवि बताते हैं कक मंकदर में प्रिेश करने पर वपता पुजारी क पाि जाकर अपने
                                                                                      े


               हाथों िे पुष्प और दीप पुजारी को देता है। पुजारी उिे लेकर देिी मााँ क चरणों में अर्पपत करता
                                                                                    े

                                                                             े
               है। पुजारी अपने हाथों में देिी मााँ क प्रिाद को लेकर उिे देने क वलए हाथ आगे करता है । वपता
                                                  े

                                                                                                          ू
               इि आनंद में प्रिाद लेना भूल ही जाता है कक अब िह अपनी पुत्री को देिी मााँ क प्रिाद का फल
                                                                                             े

                                                                                                          े
               दे पायेगा। िुवखया का वपता अभी आाँगन तक  भी नहीं पहाँच पाया था कक अचानक पीछ िे

                                                                                   े
                                                             े
                                             ू
                                    े
               आिाज़ आयी – ‘अर यह अछत मंकदर में कि घुि गया। पकड़ो इि कहीं भाग ना जाए। ककि
                                                          ै
                                                                     े
               तरह इिने मंकदर में घुिकर चालाकी की है। देखो कि िाफ़ िुथर कपड़े पहनकर हमारी नक़ल
                                                                                े
                                                                   ै
               कर रहा है। पकड़ो इि धूतष को। कहीं भाग ना जाए।’ कफर भीड़ िे आिाज़ आयी कक इि पापी ने


               मंकदर में घुि कर बड़ा अनथष ककया है। मंकदर की िालों िाल की गररमा        -, पवित्रता को इिने नष्ट



               कर कदया। िब वमलकर वचल्लाने लग जाते हैं कक इि पापी ने मंकदर में घुि कर मंकदर को दूवर्त



               कर कदया। तब िुवखया का वपता यह िोचने पर वििश हो जाता है कक क्या मेरा अछतपन देिी
                                                                                                 ू
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