Page 2 - LN-Dharm Ki Aad-1
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धम  और स ाई क  बुराइय  से काम लेना उ ह  सबसे आसान लगता है। लेखक कहता है  क यह

               आसान है भी। लेखक कहता है  क धम  और स ाई क  बुराइय  से काम लेना इसिलए आसान है
                                                                     े
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                य  क हमार देश क साधारण से साधारण आदमी तक क  दल म  यह बात अ छी तरह बैठी  ई
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               है  क धम  और स ाई क  र ा क िलए  ाण तक दे देना िबलकल सही है। बेचारा साधारण
                                                                              ु
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               आदमी धम  क त व  को  या जाने ?  क मत क सहार चलते रहना ही वह अपना धम  समझता
               है। साधारण लोग  क  इस अव था से चालाक लोग इस समय ब त गलत फ़ायदा उठा रहे ह ।
               लेखक कहता है  क पा ा य देश  म , धनी लोग  क , गरीब मज़दूर  क  झ पड़ी का मज़ाक


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               उड़ाते ऊचे-ऊचे मकान आकाश से बात  करते ह  I गरीब  क  कमाई ही से वे अमीर से अमीर
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               होते जा रहे ह , और उन ग़रीब मजदूर  क बल से ही वे हमेशा इस बात का  यास करते ह   क
               गरीब सदा चूसे जाते रह । ता क वे हमेशा अमीर बने रह । लेखक कहता है  क यह एक भयंकर

                                                                                       ु
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               अव था है। इसी क कारण, सा यवाद, बो शेिव म आ द का ज म  आ। कछ िगने-चुने लोग ह
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               जो अपने गलत इराद  क  पू त क िलए, करोड़  आदिमय  क  शि  का गलत उपयोग  कया
               करते ह । लखक कहता ह  क गरीब  का धनवान लोग  क  ारा शोषण  कया जाना इतना बुरा
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               नह  है, िजतना बरा धनवान लोगो का मजदूर  क  बुि  पर वार करना है। लेखक कहता है  क
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               वहाँ धन  दखाकर करोड़  को वश म  कया जाता है, और  फर मन-माना धन पैदा करने क िलए

                                                                                                     े
               उ ह  अपने तरीक  से चला  दया जाता है। लेखक कहता है  क यहाँ बुि  पर परदा डालकर
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               पहले ई र और आ मा का  थान अपने िलए लेना, और  फर, धम , स ाई, ई र और आ मा क

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                                                    े
               नाम पर अपन गलत इराद  क  पू त क िलए लोग  को आपस म लड़ाना-िभड़ाना। लेखक कहता


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               है  क बेचार  मूख अनपढ़ मज़दूर धम  क  दुहाइयाँ देते और दीन-दीन िच लाते ह। वे अपने

                                                                                          े

                ाण  क  बािजयाँ लगा देते ह और थोडे़-से अिनयंि त और धूत  आदिमय  क इराद  को पूरा
                                                               े
               करते और उनका बल बढ़ाते ह । धम  और स ाई क नाम पर  कए जाने वाले इस भीषण  ापार
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               को रोकने क िलए, साहस और दृढ़ता क साथ, उ ोग होना चािहए। जब तक ऐसा नह  होगा,
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               तब तक भारतवष म हमेशा बढ़ते जाने वाले झगडे कम नह  ह गे। लेखक कहता है  क सभी


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               जानते है  क धम  क  उपासना क रा ते म कोई भी  कावट नह  आती। इसका फ़ायदा उठाते  ए

               लोग िजसका मन िजस  कार चाहे, उसी  कार धम  क  भावना को अपने मन म  जगाते ह  I धम
               और स ाई, मन का सौदा हो, ई र और आ मा क बीच का संबंध हो, आ मा को शु  करने और
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               ऊचi  उठाने  का  साधन  हो।  लखक  कहता  है   क   कसी  को  भी  दूसर  ि   क    वत ता  को
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               छीनने या न  करने का साधन नह  बनना चािहए।  ि    को अपने मनोभाव क अनुसार
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