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                       fl>kbZ & idkbZ gqbZ

                       fu}±} & tgk¡ dksbZ }a} u gks] ftldk dksbZ fojks/h u gks


                   vlkjrk & lkjjfgr] ftldk dksbZ lkj u gk


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                           हीर क प्रेमी उसे साफ़-सुथरा, खरादा हुआ और आँखों में चकाचौंध पैदा करता

                             हुआ पसंद करते हैं  ।


                                                                                              े
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                           लेखक बालकष्ण क मुँह पर छाई गोधूलल को श्रेष्ठ मानता है। उसक अनुसार,

                             इसक कारण उसकी आंतररक आभा और भी लखल उठती है। बालक का धूल-
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                             धूसररत मुख बनावटी श्रृंगार प्रसाधनों से कहीं अलधक मनमोहक होता है। यह


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                             वास्तलवक होने क कारण कलिम सौंदयय सामग्री से अलधक श्रेष्ठ होता है। इसमें
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                             बालक की सहज पार्थथवता, अथायत् शारीररक कांलत जगमगा उठती है  । इसकी



                             तुलना में बनावटी सजाव-श्रृंगार कहीं नहीं रटकता  ।



                           धूल क लबना लशशु की कल्पना इसललए नहीं की जा सकती है क्योंकक लशशु चलते
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                                                                                                           ,
                             खेलते, उठते-बैठते जब लगरता है तो उसक शरीर पर धूल लगना ही है। इस धूल
                                                                      े


                                                                                      े
                             धूसररत लशशु का सौंदयय और भी बढ़ जाता है  । धूल उसक सौंदयय को बढ़ाती है  ।
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