Page 2 - L.N-Ram ka Van Jana
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Lkkjka’k                                                                                    &




















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               कोपभवन क घटना म क  जानकारी बाहर  कसी को नही थी । ककयी अपनी िजद पर अडी थी
                                                                                ै
                                                                                                      ु
                                    े
               । सार नगर म  राम क रा यािभषेक का उ साह था । गु  विश , महामं ी सुमंत सभी शभ घडी
                     े
                                                  े
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               क   ती ा कर रहे थे । महाराज क न आन पर मह ष ने सुमं  को राजभवन भेजा । मं ी सुमं
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                                                                                   े
                                                                                                         े
               न देखा महाराज पलंग पर बीमार अव था म  पडे है ।महाराज न टटत  वर म  राम से िमलन क
                                                                              े
                                                                                ू
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               इ छा जािहर क  । राम क साथ ल मण भी वहाँ आ गये । राम ने िपता और माता को  णाम
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                कया । राजा दशरथ उ ह  देखकर राम कहकर मू छत हो गए । होश आने पर भी वे कछ न बोले
               । राम ने िपता से पूछा-“िपताजी मुझसे कोई अपराध  आ है ? ककयी बोली-“महाराज  शरथ
                                                                                ै

                                                                                              े
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               न मुझे दो वरदान  दए थे । मैन कल राि  दोन  वर माँग  । िजससे यह पीछ हट रहे है । मै
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                                                                                े
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               चाहती  ँ  क रा यािभषक भरत का ही हो और तम चौदह वष  क िलए वन म  रहो । राम िपता
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               क वचन को परा करन क िलए आज ही वन जान क िलए तयार हो गए । ककयी क महल से
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               िनकलकर राम सीधे अपनी माता कौश या क पास गए । उ होन माता कौश या को ककयी क
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                                                                                                     ै
               भवन म   ए वाता लाप क बार म  बताया और अपना िनण य सुनाया । कौश या ने उ ह  अनुिचत
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               आदेश न मानन क िलए कहा पर राम न इसे िपता का आदेश मानकर माता से वन जान का
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               आशीवाद माँगा । कौश या ने अपने पु  को दस  दशा  को जीतने का आशीवा द  दया ।
               ल मण राम क इस िनण य से सहमत न होकर इस आदेश का िवरोध करना चाहते थे । राम न                     े
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               उ ह  समझाया । कौश या-भवन से राम सीता क पास गए और उसे सारी बात  बताकर वन जाने
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               क िलए िवदा माँगी । सीता उनक साथ जाने क िलए तैयार हो गई  यो क उसे उसक िपता न                   े
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               सदा अपन पित क  छाया बनकर रहन का उपदेश  दया था । ल मण भी राम क साथ जान क
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               िलए तैयार हो गए । तीनो वन जाने क िलए तैयार होकर िपता का आशीवा द लेन आए । वहा                  ँ
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               तीनो रािनया, मंि गण आ द भी उपि थत थे । सब ककयी को समझा रहे थे पर वह टस से मस
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               न  ई । दशरथ ने कहा  क- “पु  मै वचन से बंधा  ँ,पर त तु हार ऊपर कोई बंधन नही है । तम
                                                                        ु
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