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वन क े मार् में प्रथमपद अथ सवित:-
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प्रथम पद में तलसीदास जी पलखत हैं पक श्रीरामजी क े साथ उनकी वध अथात्सीताजी अभी
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नगर से बाहर पनकली ही हैं पक उनक माथ पर पसीना चमकन लगा ह। इसी क े साथ-
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साथ उनक मधर होोंठ भी प्यास से सखन लग ह। अब वे श्री रामजी से पछती हैं पक
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हम अब पणकटी (घास-फसकीझोोंपडी) कहाँ बनानी ह। उनकी इस परशानी को
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दखकर रामजी भी व्याकल हो जात हैं और उनकी आखोों से आस छलक ने लगत हैं ।
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