Page 2 - LESSON NOTE - DOHE - 2
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                                  बै ठ रह  अ त सघन बन, पै ठ सदन - तन माँह ।


                                       द ख दुपहर  जठ क  छाँह  चाह त छाँह ।।
                                          े
                                                          े
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                                                                        े
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                सग -:   त दोहा हमारी िहदी पा  प क ' श 'स िलया गया ह। इसक किव िबहारी ह।

                                                        े
               यह दोहा उनकी रचना 'िबहारी सतसई ' स िलया गया ह  । इसम   क व न जून मह ने क  गम
                                                                    ै
                                                                                        े
                                   ै
               का वण न  कया ह।
                                                                                                  ै
                ा ा - क व कहते ह   क जून मह ने क  गम  इतनी अ धक हो रह  ह  क
                                                                       े
               छाया भी छाया ढ ूँढ रह  ह अथा त वह भी गम  स बचने क  लए जगह तलाश कर
                                                                                 े
                                             ै
               रह  ह। वह या तो  कसी घने जंगल म   मलेगी या  कसी घर क अदर ।
                                                                                           ं
                                                                                       े
                      ै
                                   कागद पर  लखत न बनत, कहत सँदसु लजात ।
                                                                             े
                                       क हह सबु तेरौ  हयौ, मेर  हय क  बात ॥
                                             ै
                                                                   े

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                                                                                            े

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                सग -:   त दोहा हमारी िहदी पा  प क ' श 'स िलया गया ह। इसक किव िबहारी ह।
                                                                       ै
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               यह दोहा उनकी रचना 'िबहारी सतसई ' स िलया गया ह  । इसम क व न एक ना यका क
                                                                                          े
                वरह का वण न  कया ह।
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                                           े
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                ा ा -:  बहार  क दोह क    तुत पंि तय  म  क व न एक ना यका क   वरह का
               वण न  कया ह, जो  क अपन  ेमी से दूर ह। वह अपन   यतम को अपनी ि थ त
                                                े
                                                                 ै
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                                      ै
               बता नह ं पा रह  ह। वह  कसी कागज़ म   ेम-प   लख कर अपनी पीड़ा  य त
               नह ं कर पा रह  ह। उस  कसी को अपनी पीड़ा का संदश भेजने म  भी शम  आ
                                                                                े
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               रह  ह। अंत म  ना यका अपन  ेमी से कहती ह  क िजस तरह मेरा  दय आपक
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                                                                                                            े
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                लए तरस रहा ह,  उसी तरह आपका  दय भी मेर  लए तड़प रहा होगा। इस लए
                                   ै
                                                                         े
                                                                                                            े
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               आप मेर  दल क   यथा अपन  दल से ह  पूछ सकत ह । वह आपको मेर  दल क
               हाल क बार म  सब क ु छ बता दगा।
                                                   े
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