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               ठडा था । लेखक ने तुरन्त डंडा फ़क कदया । डंडे क लेखक की ओर खखच अने से साँप का असन
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               बदल गया । लेखक ने तुरत हलफ़ाफ़ और पोस्टकाडा चुन हलए और ईन्हें धोती क छोर पर बाँध
               कदया और छोट भाइ ने उपर खीचं हलया । डंडे को साँप क अगे से ईठाने में भी लेखक को काफ़ी
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                                                                        े
               कटठनाइयों का सामना करना पडा । साँप ऄभी भी डंडे पर बैठा था । लेखक को जीत का
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               अभास तो हो चुका था ककन्तु ऄपना हप्रय नारयणवाहन साँप क पास था । ऄगर हाथ बढा कर
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               लेता तो काट जाने का डर था । ऄतः लेखक नें एक युहि सोची और नीचे से कएँ की                  हमट्टी
                                                                                           ु
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               ईठाकर साँप क दाहहनी और फ़क दी । वह ईस पर झपटा और लेखक ने दूसर हाथ से डंडा खीच
               हलया ।  ऄगर डंडा बीच मे ना होता तो लेखक क पाँव मे साँप काट लेता । लेखक को ऄब उपर
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               चढना था । कवल हाथों क सहार , पैरों को हबना कहीं लगाए ।यह उचाँइ              36 फ़ट थी । ईस
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               समय ईसकी ऄवस्था 11 वषा थी । आस चढाइ में ईसकी छाती फ़ल गइ और धौंकनी चलने लगी
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               । उपर पहुँचकर वह काफ़ी देर तक बेहाल पडा रहा । लेखक नें 1915 इ. में मैटिक पास करने क
               बाद यह घटना ऄपनी माँ को सुनाइ । माँ ने ईसे ऄपनी गोद में हछपा हलया । माँ ने सजल नेत्रो

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               से ऄपनी गोद में लेखक को आस प्रकार जैसे हचहडया ऄप्ने बच्चों को पंखो क बीच हछपा लेती है ।
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                        लेखक बतात है कक बचपन क कदन ककतन ऄच्छ थे ,ईस समय राआफ़ल नही थी, हसफ़
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               डंडा था और ईस समय डंडे से साँप का हशकार – राआफ़ल क हशकार हजतना ही रोचक था ।
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