Page 2 - LN-Dharm Ki Aad-2
P. 2
े
आचरण को नह सुधारगे तो नमाज़ और रोज़े, पूजा और गाय ी आपको देश क अ य लोग क
े
आज़ादी को र दने और दश-भर म खुरापात का क चड़ उछालने क िलए आज़ाद न छोड़
े
े
े
े
सकगी। कहन का ता पय यह है क य द आपका आचरण दूसर क िलए सही नह है तो आप
चाहे कतनी भी पूजा-अच ना-नमाज़ आ द से कोई फ़ायदा नह होगा। लेखक कहता है क ऐसे
धा मक और दीनदार आदमी जो हर व ई र को तो याद करते ह पर तु िजनका आचरण
अ छा नह है, उनसे व नाि तक आदमी कह अिधक अ छ और ऊचे ह , िजनका आचरण अ छा
े
ँ
े
े
े
े
है, जो दूसर क सुख-दुःख का खयाल रखत ह और जो मूख को कसी वाथ -िसि क िलए
े
उकसाना ब त बुरा समझते ह । लेखक कहता है क ई र इन नाि तक को अिधक यार करगा,
े
ं
और वह अपने पिव नाम पर अपिव काम करने वाल से यही कहना पसद करगा क मुझे
े
मानो या न मानो,( तु हार मानने ही से मेरा ई र व कायम नह रहेगा ) दया करक मनु य व
े
को मानो, पशु बनना छोड़ो और आदमी बनो! यहाँ लेखक कहना चाहता है क ई र को मानो
या न मानो कोई फ़क नह पड़ता। ई र है और हमेशा रहेगा। लखक सभी से ाथ ना करता है
े
ु
क सभी मन य ह , मनु य ही बने रह पशु न बने।
श द अथ श द अथ
े
िनःसंदेह िबना कसी शक क भलमनसाहत स नता, शराफत
िखलाफत पैगंबर या बादशाह का कसौटी परख, जाँच
ितिनिध
ँ
ँ
मज़हबी धम िवशेष से संबंध अ ािलकाएँ ऊचे-ऊचे मकान
रखने वाला
पंच छल, धोखा पग कदम
अिनयंि त जो िनयं ाण म न हो, ला-मज़हब िजसका कोई धम ,
मनमाना मज़हब न हो, नाि तक