Page 2 - LN
P. 2

िं
                                                         ुिं
                                        े
                                                                                                      िं
               को जानते हुए भी कक ब्राह्मण क वेश में ृआद्र है, ुऄपने कडल और कवच दान में दे कदए । ृआस दानवीरता को देख ृआद्र
                                                                                               िं
               प्रसन्न हो गए और कणय से वरदान मााँगने को कहा । कणय ने ॅईनसे ‘शशि’ नामक शस्त् की मााँग की शजसे ृआद्र ने एक बार
               प्रयोग करने को दे कदया ।
                एक बार कणय परशुराम जी से ब्रहमास्त् सीखने ॅईनक ूअश्रम गये । परशुराम जी ने कणय को ब्राह्मण समझ शशष्य बना
                                                        े
               शलया । कणय ने ब्रह्मास्त् चलाना सीख शलया । एक कदन परशुराम जी कणय की जिंघा पर शसर रखकर सो रहे थे । एक
                                     े
               काला भौंरा कणय की जााँघ क नीचे घुसकर काटने लगा परन्तु कणय ने जााँघ को शहलाया नही क्योकक ृआससे गुरू
                                                  े
                                                                                                 ू
                                 ू
               परशुराम जी की नींद टट जाती । जब कणय क खून से परशुराम जी का शरीर भीगने लगा  तो ॅईनकी नींद टट गॄइ ।
               ॅईन्होनें देखा कक कणय की जााँघ से खून शनकल रहा है, तो ॅईन्हें कणय की सहनशशि देखकर शक हुूअ । ॅईन्होनें कणय से
               ॅईसकी ुऄसशलयत पूछी तो कणय ने बताया कक वह सूत पुत्र है । यह सुनकर परशुराम जी को क्रोध ूअया और ॅईन्होनें
               कणय को श्राप कदया कक जब ॅईसे परशुराम जी द्वारा शसखाए शवद्या की जरूरत होगी तो वह ॅईसे याद नही ूअयेगी ।
                                                 े
                            ु
                                  े
               हुूअ भी यहीं, करूक्षेत्र क मैदान में ुऄजुयन क साथ युद्ध करते हुए कणय को शवद्या याद नही रही और वह मृत्यु को प्राप्त
               हुए ।

               शब्दाथय :

               शब्द            ुऄथय                                शब्द               ुऄथय

               प्रशतस्पधाय     ककसी कायय में दूसर से ूअगे बढने की ृआछछा    ुऄनुरि     ूअसि, प्रेमयुि
                                              े

               राजनीशतज्ञ      राजनीशत सिंबिंधी बातो को जानने वाला    शनीःशिंक        सिंदेह रशहत

               द्विंद युद्ध    दो पुरूषो का परस्पर युद्ध           प्रशतहहसा          बदला लेना


               कटनीशतज्ञ       कपटनीशत से चलने वाला                शवप्लव             ॅईपद्रव, ुऄव्यवस्था
                 ू





               Learning outcome –


               fon~;kFkhZ pqukSfr;ks vkSj dfBukb;ksa dks Lohdkj djds mldk lkeuk djsaxsA
   1   2